Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 16
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय - ॥८१ ॥ ॥८८४॥ सूरीहिं तओ सव्वं समुदायं सदिऊण भणियमिणं । गुण-पगरिसेण एसो आलित्तो तेण पालित्तो अज्जप्पभिई तुब्भेहिं अम्ह वयणाओ उवयरेयव्वो । सव्वायरेण तेहिं वि तह त्ति पडिवज्जियं वयणं ॥८२॥ जोग्गो' ति इमो नाउं गुरुणा तवोवहाण-रूवेण । ऊसारण-कप्पेणं अणुनाओ सयल-सुत्तट्ठो ॥८३॥ संघस्स सम्मएणं महा-पमोएण [14.B] निय-पए ठविओ ।। अट्ठ-वरिसो वि सूरी जाओ पालित्तओ नाम भणिओ संघो तो नागहत्थिसूरीहिं जंघ-बल-हीणा । विहरेउं असमत्था अम्हे अन्नत्थ ता एसो ॥८५ ॥ संघ-पुरिसो वरिठ्ठो बालो च्चिय भविय सूरि पालित्तो । जउणा-नईए परओ विहरउ आरा अकुसलं ति ॥८६ ॥ ता अणुजाणउ संघो जेण महुराए देव-नमणत्थं । पेसेमि इमं सूरिं तो संघो सुणिय वयणमिणं विहरिस्सइ जत्थ इमो सूरि पालित्तओ तहिं नूणं ।। होही संघस्स पुरा समुन्नई सूरि पसिणाओ ॥८८॥ नज्जइ एवं नो अन्नहा उ निक्कारणे पयंपंति । पवयण-पुरिसो जामो ता अम्हे नि . . . . . . ॥८९॥ [ 15-16 अप्राप्य ] . . . . . [17.AJ. . . .ते चिलिविलियं कडीए लहुयं तओ रमइ ॥९० ॥ वसही-पच्चासन्न-ठियाण डिंभयाण मज्झयारम्मि । एत्यंतरम्मि ठाणंतराओ सोऊण मङ्ग-पसरं ॥९१ ॥ १. जोगो। २. सूरि। ३. विहारेउं ।. ४. विहरओ ५. सूरी ॥८७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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