Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ प्रबन्ध चतुष्टय इच्चाइ पढइ जा तत्थ ताव एत्थंतरम्मि संपत्तो । धरणिदो विन्नाउं दंसण- कज्जं ति तो तेण निव-लोय - लोयणाणं पयंसिया पास- सामिणो पडिमा । निग्गच्छंती देवुत्तमंग-मज्झाओ सहसि एवं कर्मकमेणं अंतिम - बत्तीसियाय पज्जंते । पडिपुन्नगोवंगा पयंसिया पास-पडिम त्ति तं दणं लोओ निव-पमुहो विम्हिओ तओ राया । सिरि- सिद्धसूरिणेवं भणिओ निसुणेसु मम वयणं देवाहिदेव देवो एसो सो मम थुईए अरिहो त्ति । अरहंतो भयवंतो सव्वन्नू सव्वदंसी य • • ॥६७॥ जस्स पभावे लीलाए जंति पावे नणु तरंति भव- जलहिं । इय दट्ठूणाइसयं पडिबुद्धा पाणिणो बहवे ॥६८॥ जयइ जिण सासणमहो जम्मी एयारिसा महापुरिसा । [ पत्र 10 अप्राप्य. ] [· [11A] 1 गतो वादी सिद्धसेन दिवाकरः Jain Education International । सिद्धसेन - दिवाकर र ( क ) थानकं कथितं । ? १. स्फुरन्ति वादिखद्योताः साम्प्रतं दक्षिणापथे । नूनमस्तं गतो वादी, सिद्धसेन दिवाकरः ॥ [प्रभावकचरिते प्रबन्धकोशे च] ॥६३॥ For Private & Personal Use Only ॥६४॥ ॥६५ ॥ ॥६६ ॥ ॥६९॥ ॥७०॥ www.jainelibrary.org

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