Book Title: Panchsutra Varttikam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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कर्मणोऽनादित्वं, जिनानां यथार्थवादित्वं, शरण्यभूताऽहंदादिचतुष्टयस्थितविशेषणानां चालनादिपुरस्सरं-तच्छरणस्वीकृतिक्रमहेतुपूर्वकं तदनुमोदनादिविधान, सप्रभेदं “पञ्चाचाराऽऽदि "निरुपणं, लोकोत्तर-लौकिकौषभेद भिन्नै जीवैः साधु क्षमापनादिविषयवर्णनं च चारुरूपेण प्रपञ्चितमस्ति........। सम्यगवलोकितं ज्ञातं च यद् धूनयति वराङ्गं विज्ञाततत्त्वसारविद्वद्वरेण्यानाम्........।
कामधेनुकल्पस्य सवार्त्तिकस्याऽस्य ग्रन्थरत्नस्य "प्रास्ताविक" लेखनाथ परमपूज्य-शासनसंरक्षणबद्धकक्ष-तपस्विराजोपाध्यायश्रीधर्मसागरजिन्महाराजशिष्यरत्नगणिवर्यश्रीमदभयसागरजिजिभिरहं प्रेरितः, तेषां सत्प्रेरणया पूज्याऽऽगमोद्वारकाचार्यवर्यपट्टप्रभावकव्याकरणविशारद-स्वर्गतपरमपूज्याचार्यदेवश्रीचन्द्रसागरसूरीश-पट्टघरमदीयपरमतारक-गुरुदेवप्रशान्तमूर्ति-परमाध्यचरणाम्बुजाचार्यवर्यश्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वराणां चाऽनुज्ञया मन्दमेधसाऽपि मया प्राथमिकोऽयं प्रयासः कृतः प्राथमिकत्वेनाल्पज्ञतया वा सुलभं क्षतिबाहुल्यम् ।
प्रार्थयेऽहमतो विनयाऽवनतमुद्रया-विद्वांसः कृपां विधाय मयि प्रास्ताविकेऽस्मिन् काश्चन क्षतयो दृष्टिपथमागच्छेयुस्ताः क्षाम्यन्तु, “शुभे यथाशक्ति यतनीयम्" इति न्यायेन प्रवृत्तोऽहं नोपहसनीयश्च तैरिति । .
" सज्झायसमं णस्थि तवो" इति हेतोर्जिनपतिचरणचर्चकचतुर्विधश्रीसद्धेन पठनपाठनादिना स्वाध्यायविषयीकृतोऽयं सवार्तिको ग्रन्थराजः स्यादात्मविशुद्धिकारक इत्यभिलाषान्वितो यत्किञ्चिदत्र जिनाज्ञाविरुद्ध प्रतिपादितं स्यात्तस्य मिथ्यादुष्कृतपूर्वक विरमामि
सङ्घन पठ्यमानोऽसौ, ग्रन्थराजः सवार्तिकः । प्रकाशतां चिरं विश्वे, यावदिन्दुनभोमणी....॥
राजकोट :तपागच्छ जैन उपाश्रयः । वीर. संवत्-२१९६-वि. सं.२०२६
श्रावण कृष्ण ६ शनिवासरः
_ निवेदक:व्याख्यानवाचस्पति-परमाराध्य-पूज्य गुरुदेवश्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वर-चरणाम्भोजभृङ्गायमानः
नरदेवसागरः
TAMAND
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