Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 18
________________ १४ षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन किये थे। तुमने कहा कि ऐसा न कहना चाहिये कि नमस्कारसे पुण्य होता है व पुण्यसे विघ्न नहीं होता है । सो यह भी तुम्हारा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि तर्कशास्त्रा आदिमें सिद्ध किया गया है कि देवताको नमस्कार करनेसे पुण्य होता है और पुण्यसे निर्विघ्न कार्य होता है। फिर जो तुमने कहा कि ऐसा माननेसे व्यभिचार आता है सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि जहाँ देवताको नमस्कार, दान पूजा आदि थर्मके करते हुए भी विघ्न हो जाता है वहाँ यह समझना चाहिये कि पूर्व में किये हुए पापका ही फल हैं, यह धर्मसाधनका दोष नहीं है तथा जहाँ देवताको नमस्कार दान पूजादि धर्मके बिना भी निर्विघ्न कार्य होता देखा जाता है वहाँ यह समझना चाहिये कि यह पूर्वमें किये हुए धर्महीका फल है, यह पापका फल नहीं है । फिर शिष्य कहता है कि-शास्त्र स्वयं मंगलरूप है या अमंगल है। यदि शास्त्र मंगलरूप है तब मंगलका मंगल करनेसे क्या प्रयोजन है और यदि शास्त्र अमंगलरूप है तब ऐसे शास्त्रसे क्या प्रयोजन सिद्ध होगा? आचार्य महाराज इसका भी समाधान करते हैं कि-भक्तिके लिये मंगलका भी मंगल किया जाता है। जैसा कि कहा है भावार्थ-दीपकसे सर्यको, जलसे समुद्रको, वाणीसे जिनवाणी अर्थात् सरस्वतीको लोग पूजते हैं, इसी तरह मंगलसे ही मंगलकी पूजा करते हैं ।।१६।। और भी यह है कि इष्टदेवताको नमस्कार करनेसे उनके प्रति उपकारकी स्वीकारता होती है, जैसा कहा है भावार्थ-मोक्षमार्गकी सिद्धि परमेष्ठी भगवानके प्रसादसे होती है इसलिये मनियों में मुख्य शास्त्रके आदिमें उनके गुणों की स्तुति करते हैं ।।१७।। और भी कहा है भावार्थ-इष्टफलकी सिद्धिका उपाय सम्यग्ज्ञान है। सो सम्यग्ज्ञान यथार्थ आगमसे होता है । उस आगमकी उत्पत्ति आप्त ( देव ) से है इसलिये वह आप्त देव पूजनीय है जिसके प्रसादसे तीन बुद्धि होती है, निश्चयसे साधु लोग ऊपर किए गए उपकारको नहीं भूलते हैं ।।१८।। इस तरह संक्षेपसे मंगलका कथन किया गया। आगे जिसके निमित्त यह शास्त्र बना उस निमित्त-कारणको कहते हैं। वीतराग सर्वज्ञ भगवानके द्वारा दिव्यध्वनि प्रगट होनेमें कारण भव्य जीवोंके पुण्यकी प्रेरणा है। जैसा कहा है भावार्थ-भष्य जीव श्रुतज्ञान रूप सूर्यके दिव्यतेज द्वारा छः द्रव्य व नव पदार्थोंका ज्ञान श्रद्धान करें इसलिये श्रुतज्ञानरूपी सूर्यका उदय होता है ।।१९।। यहाँ इस प्राभृत ग्रन्थके होनेमें निमित्त शिवकुमार महाराज हैं। जैसे द्रव्यसंग्रह आदि में मोमा सेठ आदि निमित्त थे ऐसा जानना चाहिये । इस तरह संक्षेपसे निमित्त बताया, अब

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