Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
व्याख्यान हो वहाँ सर्व ठिकाने शब्द, नय, मत आगम तथा भाव इन पाँचोंके अर्थ लगाना चाहिये । इस तरह संक्षेपमें मंगलके लिये इष्टदेवताको नमस्कार किया गया, मंगल यह उपलक्षणपद है जहाँ मङ्गल किया जावे उसके साथ पाँच बातें यथासंभव और भी कहनी चाहिये अर्थात् ग्रन्थ का निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्त्ता ।
अब यहां पर विस्तार रुचिसे सुननेवाले शिष्योंके लिये व्यवहारनय के आश्रयको लेकर यथाक्रम मङ्गल आदि छः अधिकारों का विशेष व्याख्यान किया जाता है। यह आर्ष वाक्य है
आचार्य महाराज अन्यकर्ता पहले मङ्गल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्त्ता-इन छः को कहकर फिर शास्त्रका व्याख्यान करे । २। सोही आगे दिखाते हैं
(१) मं अर्थात् मल या पापको जो गालयति अर्थात् गलावे सो मङ्गल है अथवा मंग जो पुण्य तथा सुख उसे जो लाति अर्थात् देवे वह मङ्गल है । ग्रन्थकार शास्त्रकी आदिमें मङ्गलके लिये चार प्रकार फलको चाहते हुए तीन प्रकार देवताका तीन प्रकार नमस्कार करते हैं। चार प्रकार फलके लिये कहा है
भावार्थ- नास्तिकपनेके त्यागके लिये अर्थात् प्रन्थकर्ता आस्तिक है यह बतानेके लिये, शिष्टाचार जो परंपरासे चला आया विनयका नियम उसको पालनके लिये, पुण्यकी प्राप्तिके लिये तथा विघ्नके दूर करने के लिये इन चार बातोंको चाहते हुए ग्रन्थके आदिमें इष्टदेवकी स्तुति की जाती है । ३। तीन प्रकार देवताका भाव यह है, कि जिसको नमस्कार किया जावे वह अपनेको इष्ट अर्थात् प्रिय हो, अधिकृत हो अर्थात् जिसका यहाँ अधिकार हो तथा अभिमत हो अर्थात् जो माननीय हो । नमस्कार भी तीन प्रकार है- एक आशीर्वादरूप, दूसरे वस्तुस्वरूप कथनरूप, तीसरे नमस्काररूप । यह मङ्गल दो प्रकारका है - एक मुख्य, दूसरा गौण मुख्य मंगल जिनेन्द्र- गुण स्तवन है । जैसा कहा है
भावार्थ- बुद्धिमानोंने कहा है कि आदि मध्यम तथा अन्तमें मङ्गल करना चाहिये जिससे विघ्नोंका नाश हो। वह मंगल श्री जिनेन्द्रके गुणोंका स्तोत्र है ।।४।। और भी कहा है
भावार्थ - श्री जिनेन्द्रोंका गुणगान करनेसे विघ्नोंका नाश होता है, कभी भय नहीं लगता है, न नीच देव उल्लंघन करते हैं तथा अपने इच्छित पदार्थोका सदा लाभ होता है ।। ५ ।। और भी कहा है