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निरयावलिका सूत्र
अत्थं भासइ अरहा, सत्तं गंथंति गणहरा णिउणं। सासणस्स हियट्ठयाए, तेण तित्थं पवत्तइ॥
अर्थ - तीर्थंकर भगवान् अर्थ फरमाते हैं और गणधर भगवान् शासन के हित के लिये सूत्र रूप से उसे गून्थन करते हैं। जिससे तीर्थंकर का शासन चलता है।
जिस प्रकार पञ्चास्तिकाय (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय) भूतकाल में थी, वर्तमान काल में है और भविष्यत्काल में भी रहेगी। अतएव यह ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है। द्वादशांग का अर्थ है बारह अंग सूत्र। उनके नाम इस प्रकार है - आचाराङ्ग, सूयगडाङ्ग, ठाणाङ्ग, समवायाङ्ग, भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति), ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशाङ्ग, अन्तगडदशाङ्ग, अनुत्तरोववाई, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र और दृष्टिवाद।।
इस पांचवें आरे में सम्पूर्ण दृष्टिवाद का विच्छेद हो चुका है। अब तो ग्यारह अंग सूत्र ही उपलब्ध होते हैं। : अङ्गों की तरह उपाङ्गों की संख्या भी बारह है। उनके नाम इस प्रकार हैं - उववाई, रायपसेणी, जीवाजीवाभिगम, पण्णवणा, जम्बूदीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिया, कप्पवडंसिया, पुप्फिया, पुष्पचूलिया और वण्हिदसा। ___ प्रस्तुत निरयावलिका सूत्र उपांग वर्ग का आगम है। यह जैन आगम,के बारह उपांगों में से अंतिम पांच उपांगों का संग्रह है अर्थात् निरयावलिया (निरयावलिका) अपर नाम कप्पिया (कल्पिका) में पांच उपांग समाविष्ट हैं जो इस प्रकार हैं - १. निरयावलिका या कल्पिका २. कल्पावतंसिका ३. पुष्पिका ४. पुष्पचूलिका और ५. वृष्णिदशा। ये पांचों उपांग छोटे छोटे होने के कारण एक ही आगम में पांच वर्ग के रूप में सन्नद्ध किये गये हैं। इन पांचों का पारस्परिक संबंध है। प्रथम सूत्र निरयावलिका होने से ये निरयावलिका के नाम से ही जाने जाते हैं किंतु पृथक्-पृथक् हैं।
आगमों में चार प्रकार के अनुयोगों का निरूपण किया गया है - १. द्रव्यानुयोग २. गणितानुयोग ३. चरणकरणानुयोग और ४. धर्मकथानुयोग। निरयावलिका में मुख्य रूप से धर्मकथानुयोग का वर्णन है।
जिस आगम में नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन हो वह निरयावलिया है। इस आगम में एक श्रुतस्कंध है, बावन अध्ययन हैं, पांच वर्ग हैं और ग्यारह सौ श्लोक प्रमाण मूल पाठ है। निरयावलिका के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं। प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
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