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पुष्पचूलिका
पार्श्वप्रभु का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जाव णवरयणिए वण्णओ सो चेव, समोसरणं। परिसा णिग्गया॥१४८॥
भावार्थ - उस काल उस सयम में पुरुषादानीय नौ हाथ की अवगाहना वाले इत्यादि रूप से वर्णनीय अर्हत् पार्श्वप्रभु राजगृह नगर में पधारे। परिषद् दर्शन करने के लिए निकली॥
तए णं सा भूया दारिया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्टतुट्ठ० जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्मयाओ! पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव गणपरिवुडे विहरइ, तं इच्छामि गं अम्मयाओ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायवंदिया गमित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंधं.... ...॥१४६॥ ___भावार्य - जब भूता दारिका ने यह समाचार सुना तो वह अत्यंत हृष्ट तुष्ट हुई और जहाँ उसके माता-पिता थे वहाँ जाकर इस प्रकार बोली- 'हे पूजनीय माता-पिता! अर्हत पुरुषादानीय पार्श्वनाथ प्रभु ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यावत् बहुत से साधुओं के परिवार के साथ यहाँ पधारे हैं अतः मेरी इच्छा है कि आपकी आज्ञा प्राप्त कर मैं भगवान् पार्श्वनाथ को वंदना नमस्कार करने के लिये जाऊँ।'
माता-पिता ने उत्तर दिया- 'हे देवानुप्रिय! तुम्हें जैसा सुख हो वैसा करो किन्तु धर्म कार्य में प्रमाद मत करो।'
भूता द्वारा प्रभु की पर्युपासना तए णं सा भूया दारिया पहाया जाव सरीरा चेडीचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा। तए णं सा भूया दारिया णिययपरिवारपरिवुडा रायगिंह णयरं मझमझेणं णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थयराइसए पासइ
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