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वर्ग ५ शेष अध्ययन
- शेष अध्ययन एवं सेसावि एक्कारस अज्झयणा णेयव्वा संगहणीअणुसारेण अहीणमइरित्तं एक्कारससुवि तिबेमि॥१८२॥ ५॥१२॥
वण्हिदसाओ समत्ताओ। पंचमो वग्गो समत्तो॥५॥ .. णिरयावलियाइसुयक्खंधो समत्तो॥ समत्ताणि उवंगाणि॥
भावार्थ - इसी प्रकार शेष ग्यारह अध्ययनों का आशय भी संग्रहणी गाथा के अनुसार बिना किसी हीनाधिकता के जैसा है वैसा समझ लेना चाहिये। सुधर्मा स्वामी कहते हैं - हे जम्बू! भगवान् के समीप मैंने जैसा सुना, वैसा ही तुझे कहा है।
पंचम वर्ग समाप्त॥ ॥ वृष्णिदशा समाप्त॥ निरयावलिका नामक श्रुतस्कंध समाप्त। उपांग (पांच) समाप्त।
उपसंहार णिरियावलियाइउवंगाणं एगो सुयक्खंधो, पंच वग्गा, पंचसु दिवसेसु उद्दिस्संति, तत्थ चउसु वग्गेसु दस उद्देसगा, पंचमवग्गे बारस उद्देसगा॥
॥णिरयावलियाइसुत्ताई समत्ताँई॥ भावार्थ - निरयावलिका उपांग में एक श्रुतस्कंध है। उसके पांच वर्ग हैं। जिनका पांच दिनों में उपदेश दिया जाता (निरूपण किया जाता) है। इसके चार वर्गों में दस दस उद्देशक हैं। पांचवें वर्ग में बारह उद्देशक हैं।
विवेचन - वृष्णिदशा के बारह अध्ययनों में अन्धकवृष्णि राजा के बारह कुमारों का वर्णन है। प्रथम अध्ययन में वर्णित निषधकुमार के समान ही शेष ग्यारह अध्ययनों के ग्यारह महापुरुषों ने क्रमशः साधना के मार्ग पर आरूढ होकर, संवर और निर्जरा द्वारा अपने अंतिम लक्ष्य मोक्ष स्थान को प्राप्त किया।
|| निरयावलिका सत्र समाप्त॥
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