Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 171
________________ १५४ वृष्णिदशा सूत्र भावों में काल करके ऊर्ध्व चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा रूप ज्योतिषी देव, सौधर्म ईशान यावत् अच्युत देवलोकों तथा तीन सौ अठारह ग्रैवेयक विमानों का उल्लंघन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ। वहां देवों की तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। निषध देव की भी वहां तेतीस सागरोपम की स्थिति है। भविष्य कथन-उपसंहार से णं भंते! णिसढे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिंगच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ?, वरदत्ता! इहेव जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उण्णाए णयरे विसुद्धपिइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। तए णं से उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलबोहिं बुझिहिइ बुझिहित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वजिहिइ। से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ इरियासमिए जाव गुत्तबम्भयारी। । ___ से णं तत्थ बहूहिं चउत्थछटुट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणिस्सइ पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसिहिइ झूसित्ता सद्धिं भत्ताई अणसणाए छेइहिइ, जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे मुण्डभावे अण्हाणए जाव अदंतवणए अच्छत्तए अणोवाहणए फलहसेज्जा कट्ठसेजा केसलोए बम्भचेरवासे परघरपवेसे पिण्डवाओ लद्धावलद्धे उच्चावया य गामकण्टगा अहियासिज्जंति तमढें आराहेइ आराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झिहिइ बुझिहिइ जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ। णिक्खेवओ॥१८१॥ पढमं अज्झयणं समंत्तं॥५॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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