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वृष्णिदशा सूत्र .............. .............................................
भावार्थ - उस द्वारिका नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव राजा राज्य करते थे। वे समुद्रविजय आदि दस दशा), बलदेव प्रमुख पांच महावीरों, उग्रसेन प्रमुख सोलह हजार मुकुटबद्ध राजाओं, प्रद्युम्न आदि साढे तीन करोड़ कुमारों, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त योद्धाओं, वीरसेन प्रमुख इक्कीस हजार शूरवीरों, रुक्मिणी प्रमुख सोलह हजार रानियों, अनंगसेना प्रमुख अनेक सहस्र गणिकाओं तथा इनके अतिरिक्त और भी बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाहों आदि का वैताढ्य पर्वत से समुद्र पर्यन्त दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र पर शासन करते हुए यावत् विचरते थे।
निषधकुमार का जन्म तत्थ णं बारवईए णयरीए बलदेवे णामं राया होत्था, महया जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। तस्स णं बलदेवस्स रण्णो रेवई णामं देवी होत्या, सोमाल. जाव विहरइ। तए णं सा रेवई देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव सीहं सुमिणे पासित्ताणं...., एवं सुमिणदंसणपरिकहणं, कलाओ जहा महाबलस्स, पण्णासओ दाओ, पण्णासरायवरकण्णगाणं एगदिवसे पाणिग्गहणं...., णवरं णिसढे णामं जाव उप्पिं पासाए विहरइ॥१६॥..
भावार्थ - उस द्वारिका नगरी में बलदेव नामक राजा थे। वे महान् थे यावत् राज्य करते थे। उस बलदेव राजा की रेवती नामक रानी थी जो सुकुमाल थी यावत् विचरती थी।
तत्पश्चात् किसी समय रेवती रानी विशिष्ट प्रकार की शय्या पर सोती हुई सिंह का स्वप्न देख कर जागृत हुई। यहाँ स्वप्न दर्शन, परिकथन, जन्म, कला ग्रहण आदि समस्त वर्णन महाबल कुमार के समान समझना चाहिये। एक ही दिन पचास उत्तम कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। पचास-पचास वस्तुएं दहेज में मिलीं। विशेषता यह है कि उस बालक का नाम 'निषधकुमार' रखा गया यावत् वह सुखोपभोग में समय व्यतीत करने लगा।
भगवान् अरिष्टनेमि का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी आइगरे...दस धणूई वण्णओ जाव समोसरिए। परिसा णिग्गया॥१६६॥
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