Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 162
________________ वर्ग ५ अध्ययन १ कृष्ण वासुदेव द्वारा भगवान् की पर्युपासना १४५ ......................................................... भावार्थ - उस काल और उस समय में अर्हत् अरिष्टनेमि प्रभु का पदार्पण हुआ। वे धर्म की आदि करने वाले, दस धनुष की अवगाहना वाले थे यावत् समवसृत हुए। परिषद् धर्म श्रवण करने के लिये निकली। सामुदानिक भेरी बजाने का आदेश तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हद्वतुडे० कोडुंबियपुरिसं सद्दावेइ सहावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाणियं भेरिं तालेह। तए णं से कोडुंबियपुरिसे जाव पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाणिया भेरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सामुदाणियं भेरिं महया महया सद्देणं तालेइ॥१६७॥ भावार्थ - भगवान् के आगमन का समाचार सुनकर कृष्णवासुदेव हृष्टतुष्ट हुए और कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर इस प्रकार आज्ञा दी - 'हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही सुधर्मा सभा में जाकर सामुदानिक भेरी को बजाओ।' तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुष कृष्ण वासुदेव की आज्ञा स्वीकार कर जहां सुधर्मा सभा में सामुदानिक भेरी थी वहां आए, आकर उस सामुदानिक भेरी को खूब जोर से बजाया। कृष्ण वासुदेव द्वारा भगवान् की पर्युपासना तए णं तीसे सामुदाणियाए भेरीए महया महया सद्देणं तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा.........देवीओ (उण)भाणियव्वाओ जाव अणंगसेणापामोक्खा अणेगा गणियासहस्सा, अण्णे य बहवे राईसर जाव सत्यवाहप्पभिइओ व्हाया जाव पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया जहाविभवइडीसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया जाव पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल० कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति। - तए णं से कण्हे वासुदेव कोडुम्बियपुरिसे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कहत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहपवर जाव पच्चप्पिणंति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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