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वर्ग ५ अध्ययन १ कृष्ण वासुदेव का शासन
जक्खाययणं, से णं सुरप्पिए जक्खाययणे एगेणं महया वणसंडेणं सव्वओ० जहा पुण्णभद्दे जाव सिलावट्टए।। १६३ ॥
कठिन शब्दार्थ - अदूरसामंते - न अधिक दूर और न अधिक समीप, सव्वोउयपुप्फ० - सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध, जक्खाययणे - यक्षायतन, चिराईए अति प्राचीन, आगम्मंआ-आकर, सिलावट्टए - शिलापट्टक ।
भावार्थ - उस रेवतक पर्वत से न अधिक दूर और न अधिक नजदीक एक नंदनवन नाम का उद्यान था जो सर्व ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध, रमणीय, आनंदप्रद, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था। उस नंदनवन उद्यान के मध्यभाग में सुरप्रिय नामक यक्ष का यक्षायत प्राचीन था यावत् बहुत से लोग वहां आ आकर सुरप्रिय यक्षायतन की अर्चना करते थे । वह सुरप्रिय यक्षायतन पूर्णभद्र चैत्य के समान चारों ओर से एक विशाल वनखंड से घिरा हुआ था यावत् उ वनखण्ड में एक पृथ्वी शिलापट्टक था ।
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कृष्ण वासुदेव का शासन
तत्थ णं बारवईए णयरीए कण्हे णामं वासुदेवे राया होत्था जाव पसासेमाणे विहरइ । से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसहं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणंपंचण्हं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं राईसाहस्सीणं, पज्जुण्णपामोक्खाणं अधुट्ठाणं कुमारकोडीणं, सम्बपामोक्खाणं सट्ठीए दुद्दंतसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवगसाहस्सीणं, रुप्पिणिपामोक्खाणं सोलहसण्हं देवीसाहस्सीणं, अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अण्णेतिं च बहूणं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईणं वेयङ्कगिरिसागरमेरागस्स वाहिणडभरहस्त आहेवनं जाव विहरइ ॥ १६४ ॥ कठिन शब्दार्थ समुह विजयपामोक्खाणं समुद्र विजय प्रमुख, सोलसहं राईसाहस्सीणं - सोलह हजार राजाओं के, छप्पण्णाए बलवगसाहस्सीणं - छप्पन हजार बलवानों के, वेयङगिरिसागर मेरागस्स - वैताढ्य गिरि और सागर से मर्यादित, आहेव - आधिपत्य ।
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