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वर्ग ५ अध्ययन १ रैवतक पर्वत का वर्णन
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भावार्थ - 'हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् भगवान् महावीर स्वामी ने वृष्णिदशा नामक पांचवें वर्ग-उपांग के बारह अध्ययन फरमाये हैं तो हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का प्रभु ने क्या भाव निरूपण किया है?'
तब सुधर्मा स्वामी ने जम्बूस्वामी से कहा - 'हे आयुष्मान् जम्बू ! उस काल उस समय में द्वारिका नाम की नगरी थी जो बारह योजन की लम्बी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक समान प्रासादीयचित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय - देखने योग्य, अभिरूप और प्रतिरूप थी । '
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विवेचन - चौथे वर्ग (उपांग) के भावों को जानने के बाद जम्बूस्वामी के मन में पांचवें वर्ग के भावों को जानने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने सुधर्मा स्वामी से करबद्ध निवेदन किया कि - हे भगवन्! श्रमण शिरोमणि भगवान् महावीर स्वामी ने पांचवें वर्ग में किन भावों का प्रतिपादन किया है ? सुधर्मा स्वामी ने उत्तर में फरमाया कि वृष्णिदशा नामक पांचवें वर्ग में प्रभु ने निषधकुमार आदि बारह कुमारों का वर्णन किया है।
रैवतक पर्वत का वर्णन
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तीसे णं बारवईए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए एत्थ णं रेवईए णामं पव्वए होत्या, तुंगे गयणयलमणुलिहंतसिहरे णाणाविह रुक्ख - ख - गुच्छ - गुम्म - लया - वल्ली - परिगयाभिरामे हंस मिय मयूर कोंच-सारस-चक्क वागमयणसाला - कोइल - कुलोववेए तडकडगवियर - ओज्झर - पवाय पब्भारसिहरपउरे अच्छरगणदेवसंघ-चारणविज्जाहर - मिहुणसंणिचिण्णे णिच्चच्छणए दसारवरवीरपुरिस - तेल्लोक्कबलवगाणं सोमे सुभए पियदंसणे सुरूवे पासाईए जाव पडिरूवे॥१६२॥
कठिन शब्दार्थ - गयणयलमणुलिहंतसिंहरे - गगणतलमनुलिहच्छिखरः - गगनतल को स्पर्श करते शिखर, णाणाविहरुक्खगुच्छगुम्म- लथा - वल्ली - परिगयाभिरामे - नानाविध वृक्ष गुच्छगुल्म- लता वल्ली परिगताभिरामः -न :- नाना प्रकार के वृक्षों, गुच्छों, गुल्मों, लताओं और वल्लियों से व्याप्त और अभिराम, हंसमियमयूर - कोंच-सारस-चक्कवागमयणसाला कोइल कुलोववेए - हंस मृग मयूर क्रोञ्च सारस-चक्रवाक - मदनशाला - कोकिल कुलोपपेतः- हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस,
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