________________
वण्हिदसाओ-वृष्णिदशा पंचमो वग्गो-पटमं अज्झयणं
पांचवां वर्ग - प्रथम अध्ययन जइ णं भंते! उक्खेवओ जाव दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहाणिसढे मायणि-वह-वहे पगया जुत्ती दसरहे दढरहे य। महाधणू सत्तधणू दसधणू णामे सयधणू य॥१॥
भावार्थ - जम्बू स्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि चतुर्थ उपांग (वर्ग) पुष्पचूलिका का यह भाव निरूपण किया है तो हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पांचवें वृष्णिदशा नामक उपांग (वर्ग) के क्या भाव फरमाये हैं?' ___ सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया - 'हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पांचवें उपांग (वर्ग) वृष्णिदशा के बारह अध्ययन कहे हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. निषध . मातलि ३. वह ४. वहे ५. पगया (पगता) ६. युक्ति (ज्योति) ७. दशरथ ८. दृढरथ ६. महाधन्वा १०. सप्तधन्वा ११. दशधन्वा और १२. शतधन्वा।'
द्वारिका का वर्णन जइ णं भंते! समणेणं जाव दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते!....उक्खेवओ। एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई णामं णयरी होत्था, दुवासलजोयणायामा जाव पञ्चक्खं देवलोयभूया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा॥१६१॥
कठिन शब्दार्थ - दुवालसजोयणायामा - बारह योजन लम्बी, पच्चक्खं - प्रत्यक्ष, देवलोयभूया- देवलोकभूत, पासाईया - प्रासादीया-मन को प्रसन्न करने वाली, दरिसणिज्जा - दर्शनीया-दर्शनीय, अभिरुवा - अभिरूपा-अभिरूप-सुंदर छटा वाली, पडिरूवा - प्रतिरूप-अनुपम शिल्प कला से सुशोभित।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org