Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 156
________________ वर्ग ४ अध्ययन २-१० १३६ ........................................................... दो से दस तक नौ अध्ययन एवं सेसाणवि णवण्हं भाणियव्वं। सरिसणामा विमाणा। सोहम्मे कप्पे। पुव्वभवे णयर-चेइए-पियमाईणं अप्पणो य णामाई जहा संगहणीए। सव्वा पासस्स अंतिए णिक्खंता। ताओ पुष्फचूलाणं सिस्सिणियाओ सरीरबाओसियाओ सव्वाओ अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिंति....॥१६०॥४॥१०॥ पुष्फचू(ला)लियाओ समत्ताओ॥ चउत्थो वग्गो समत्तो॥४॥ भावार्थ - इसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों का भी वर्णन समझ लेना चाहिये। अपने अपने नाम के समान नाम वाले विमानों में उत्पत्ति हुई। सभी का सौधर्म कल्प में जन्म हुआ। पूर्वभव भूता के समान। नगर, चैत्य, माता पिता और अपने नाम संग्रहणी गाथा के अनुसार है। सभी ने भगवान् पार्श्वनाथ के समीप प्रव्रज्या अंगीकार की और पुष्पचूलिका आर्या की शिष्याएं बनीं। सभी शरीर बकुशिका हुईं और देवलोक में गईं। वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होंगी। विवेचन - जिस प्रकार प्रथम अध्ययन में श्रीदेवी का वर्णन है उसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों का भी वर्णन है। मरण के पश्चात् अपने अपने नाम के अनुरूप नाम वाले विमानों में उनकी उत्पत्ति हुई। जैसे - ह्री देवी की ह्री विमान में, धृति देवी की धृति विमान में, कीर्ति देवी की कीर्ति नामक विमान में, बुद्धि देवी की बुद्धि विमान में, लक्ष्मी देवी लक्ष्मी विमान में, इलादेवी इला विमान में, सुरा देवी सुरा विमान में, रस देवी रस विमान में और गंध देवी गंध विमान में उत्पन्न हुई। पूर्व भव के नगर माता पिता संग्रहणी गाथा के अनुसार जानना। सभी भगवान् पार्श्वनाथ के पास दीक्षित हुईं। पुष्फचूलिका आर्यिका की शिष्याएं बनीं। सबने शरीर की शुश्रूषा की-शरीर बकुशिका बनीं। देवलोक में गयीं। वहां से चवकर महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगी। ॥ अध्ययन २-१० समाप्त॥ ॥ पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ वर्ग समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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