Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वर्ग ४ अध्ययन १ श्री देवी का पूर्व भव
१३१
श्री देवी का पूर्व भव तेणं कालेणं तेणं समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं० जहा बहुपुत्तिया जाव गट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया। णवरं (दारय) दारियाओ णत्थि। पुव्वभवपुच्छा।
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, जियसत्तू राया। तत्थ णं रायगिहे णयरे सुदंसणे णाम गाहावई परिवसइ, अड्डे० । तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया णामं भारिया होत्था, सोमाल०। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया पियाए गाहावइणीए अत्तिया भूया णामं दारिया होत्था । वु(बु)हां वुडकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी वरगपरिवज्जिया यावि होत्था॥१४७॥ .. कठिन शब्दार्थ - वुड्डा - वृद्धा, वुडकुमारी - वृद्ध कुमारी, जुण्णा - जीर्णा, जुण्णकुमारी - जीर्णकुमारी, पडियपुयत्थणी - पतितपुतस्तनी-शिथिल नितम्ब और स्तन वाली, वरगपरिवज्जियावर परिवर्जिता-वर विहीन-अविवाहित।
भावार्थ - उस काल उस समय में श्रीदेवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक नामक विमान की सुधर्मा सभा में बहुपुत्रिका देवी के समान चार हजार सामानिक देवियों एवं चार महत्तरिकाओं के साथ अपने श्रीसिंहासन पर बैठी हुई थी यावत् नाट्य विधि दिखाकर वापिस लौट गई। अंतर इतना है कि इसने बालिकाओं के वैक्रिय रूप नहीं बनाये। गौतम स्वामी ने श्रीदेवी के पूर्व भव की पृच्छा की। भगवान् ने उत्तर दिया - हे गौतम! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। गुणशीलक उद्यान था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था। उस राजगृह नगर में सुदर्शन नामक गाथापति रहता था जो ऋद्धि संपन्न यावत् अपराभूत था। उस सुदर्शन गाथापति की प्रिया नामक भार्या (धर्मपत्नी) थी जो सुकुमाल, परिपूर्णाग आदि गुणों से युक्त थी। उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री, प्रिया भार्या (गाथापत्नी) की अंगजात (आत्मजा) भूता नाम की लड़की थी जो वृद्धा, वृद्ध शरीरा (कुमार अवस्था में भी वृद्धा जैसी), जीर्णा, जीर्ण शरीर वाली, शिथिल नितम्ब और स्तनवाली तथा वर विहीन-पति से वर्जित अविवाहित थी।
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