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पुष्पचूलिका .......................... ..................... चाहती हूँ।' प्रभु ने फरमाया-'हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो किन्तु धर्मकार्य में प्रमाद मत करो।'
तए णं सा भूया दारिया तमेव धम्मियं जाणप्पवरं जाव दुरूहइ दुरूहित्ता जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागया, रायगिहं णयरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया, रहाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागया, करयल० जहा जमाली आपुच्छइ। अहासुहं देवाणुप्पिए! ॥१५२॥
भावार्थ - तदनन्तर वह भूता दारिका धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ होकर जहाँ राजगृह नगर था वहाँ आई और राजगृह नगर के मध्य भाग में होकर जहाँ अपना घर था वहाँ आई। आकर रथ से . नीचे उतर कर जहाँ माता-पिता थे उनके पास आई, आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् जमाली की तरह माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा मांगी। माता-पिता ने उत्तर में कहा-'हे देवानुप्रिय! जैसा सुख हो वैसा करो किन्तु धर्म कार्य में विलम्ब मत करो।'
भूतादारिका का अभिनिष्क्रमण तए णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ मित्तणाइ० आमंतेइ आमंतित्ता जाव जिमियभुत्तुत्तरकाले सुईभूए णिक्खमणमाणेत्ता कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! भूयादारियाए पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवट्ठवेह उवट्ठवित्ता जाव पच्चप्पिणह। तए णं ते जाव पच्चप्पिणंति॥१५३॥
कठिन शब्दार्थ - जिमियभुत्तुत्तरकाले - जिमित भुक्तयुत्तरकाले-भोजन करने के बाद, सुईभूए - शूचिभूत हो-पवित्र हो। ___ भावार्थ - तत्पश्चात् सुदर्शन गाथापति ने विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम युक्त भोजन सामग्री तैयार करवाई और मित्रों ज्ञातिजनों आदि को आमंत्रित करके यावत् भोजन करने के पश्चात् शुचिभूत-शुद्ध स्वच्छ हो कर अभिनिष्क्रमण के लिए कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर उनसे कहा-'हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही भूता दारिका के लिए सहस्र (हजार) पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली ऐसी शिविका (पालकी) लाओ और लाकर कार्य पूरा होने की सूचना मुझे दो। तब कौटुम्बिक पुरुष यावत् आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाते हैं।
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