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। पुष्पचूलिका ..........................................................
भावार्थ - तब वह भूता दारिका भगवान् पार्श्वनाथ के उपरोक्त वचनों को सुन कर अत्यंत हृष्ट तुष्ट हुई और उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में जाकर स्वयं अपने हाथों से सर्व आभरणअलंकारों को उतारा और देवानंदा के समान पुष्पचूलिका आर्या के पास दीक्षित हुई यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी बन गयी।
भूता शरीरबकुशिका बनी तए णं सा भूया अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाओसिया जाया यावि होत्था, अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवइ, पाए धोवइ, एवं सीसं धोवइ, मुहं. धोवइ, थणगंतराइं धोवइ, कक्खंतराइं धोवइ, गुज्झंतराइं धोवइ, जत्थ जत्थ वि य गं ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेएइ, तत्थ तत्थ वि य णं पुवामेव पाणएणं अब्भुक्खेइ, तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेएइ॥१५७॥ - कठिन शब्दार्थ - सरीबाउसिया - शरीर बकुशिका, धोवइ - धोती है, थणगंतराइं - स्तनान्तर-स्तक के अन्तर भाग को, कक्खंतराइं - कांख के अंतर भाग को, गुमंतराई - गुह्यान्तरगुह्य स्थान के अंतर भाग को, अब्भुक्खेइ - अभ्युक्षति-अभिषिंचति-छिड़कती। ___ भावार्थ - तब किसी समय भूता आर्यिका शरीर बकुशिका बन गई। वह बार-बार हाथ धोती, पैर धोती, शिर धोती, मुख धोती, स्तनान्तर-स्तन के अन्तर भाग को धोती, कांख के अन्तर भाग को धोती, गुह्य स्थान के अंतर भाग को धोती और जहाँ कहीं भी खड़ी होती, सोती, बैठती अथवा स्वाध्याय करती उस-उस स्थान पर पहले पानी छिड़कती और तत्पश्चात् वहाँ खड़ी होती, सोती, बैठती अथवा स्वाध्याय करती।
पुष्पचूलिका आर्या द्वारा समझाना तए णं ताओ पुप्फचूलाओ अज्जाओ भूयं अज्जं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिए! समणीओ णिग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव गुत्तबम्भयारिणीओ, णो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाओसियाणं होत्तए, तुमं च णं देवाणुप्पिए! सरीरबाओसिया अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवसि जाव णिसीहियं चेएसि, तं णं तुमं देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहित्ति, सेसं जहा सुभद्दाए जाव पाडिएक्वं
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