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निरयावलिका सूत्र
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विचार) उत्पन्न हुआ कि निश्चय ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पूर्वानुपूर्वी क्रम से विहार करते हुए यहां पधारे हैं यावत् विचरण कर रहे हैं। तथारूप के श्रमण भगवंतों का नाम श्रवण ही महान् फलदायी है तो उनके समीप पहुंच कर वंदन नमस्कार करने यावत् उनके पास से विपुल अर्थ ग्रहण के फल का तो कहना ही क्या है? अतः मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास जाऊँ यावत् उनकी पर्युपासना करूँ और मेरे मन में रहे हुए प्रश्न को पूछूं। ऐसा विचार करके उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुला कर उन्हें आज्ञा दी कि 'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही धार्मिक कार्यों में प्रयोग किये जाने वाले श्रेष्ठ रथ को जोत कर लाओ ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने जुते हुए रथ को उपस्थित किया. यावत् आज्ञानुसार कार्य किये जाने की सूचना दी।
काली का भगवान् के समीप गमन
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तणं सा काली देवी व्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा बहूहिं खुज्जाहिं जाव महत्तरगविंदपरिक्खित्ता अंतेउराओ णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ दुरूहित्ता णियगपरियालसंपरिवुडा चंपं णयरिं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता छत्ताईए जाव धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ ठवित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पचोरुहइ पचोरुहित्ता बहूहिं खुज्जाहिं जाव महत्तरगविंदपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ वंदित्ता ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी णमंसमाणी अभिमुहा विणणं पंजलिउडा पज्जुवासइ ॥ ६॥
कठिन शब्दार्थ - कयबलिकम्मा - कृतबलिकर्मा, अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा - अल्प (अल्पभार वाले) किन्तु बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को विभूषित किया, खुज्जाहिं कुब्जादासियों, महत्तरगविंदपरिक्खित्ता - महत्तरक वृन्द (अंतःपुर रक्षिकाओं) से घिरी हुई, णियगपरियाल - संपरिवुडा- अपने परिजनों से परिवेष्टित, सुस्सूसमाणा - उत्सुक होकर, पंजलिउडा - अञ्जलि करके ।
भावार्थ - तब उस काली देवी ने स्नान किया, बलिकर्म कर यावत् अल्प किन्तु महामूल्यवान्
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