________________
वर्ग १ अध्ययन १ अभयकुमार का आगमन
धन्य, मंगल, मित, मधुर और सुन्दर वाणी से आश्वासन देता है। आश्वासन देकर चलना देवी के पास से निकल कर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी, वहाँ आता है। आकर श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठता है और उस दोहद की पूर्ति करने के लिए बहुत से आयों (लाभों) से, उपायों से, औत्पत्तिकी बुद्धि से, वैनयिकी बुद्धि से, कार्मिक बुद्धि से, पारिणामिकी बुद्धि से इस तरह चारों प्रकार की बुद्धि से बार-बार विचार करता है । विचार करने पर भी उस दोहद के आय, उपाय, स्थिति और उत्पत्ति को समझ नहीं पाता अर्थात् दोहद की पूर्ति का कोई उपाय उसे नहीं सूझता अतएव श्रेणिक राजा उत्साहहीन यावत् चिन्ताग्रस्त हो जाता है।
विवेचन - महारानी चेलना जो अपने दोहद के कारण व्यथित थी उसे श्रेणिक राजा मधुर प्रिय वचनों से संतुष्ट करने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि वाणी में ही मधुरता है तो वाणी में ही विष है। राजा श्रेणिक चारों प्रकार की बुद्धि के अलावा दोहद की पूर्ति का उपाय सोचता है। जब उसे कुछ भी समझ में नहीं आता है तो वह भी विचार सागर में गोते खाने लगता है।
अभयकुमार का आगमन
इमं च ण अभए कुमारे पहाए जाव सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइपडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छत्ता सेणियं रायं ओहय० जाव झियायमाणं पासइ पासित्ता एवं वयासीअण्णया णं ताओ! तुब्भे ममं पासित्ता हट्ठ जाव हियया भवह किं णं ताओ! अज्ज तुभे अह० जाव झियाह? तं जइ णं अहं ताओ! एयमट्ठस्स अरिहे सवणयाए तो णं तुभे मम एयमहं जहाभूयमवितहं असंदिद्धं परिकहेह, जा णं अहं तस्स अस अंतगमणं करेमि ॥ २२॥
२३
भावार्थ - इधर अभयकुमार स्नान करके यावत् समस्त अलंकारों से विभूषित हो कर अपने घर से निकलता है और निकल कर जहाँ बाहर उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेणिक राजा थे वहाँ आता है आकर श्रेणिक राजा को मन के संकल्प से आहत यावत् आर्त्तध्यान करते हुए देखता है । देख कर इस प्रकार बोला-हे तात! पहले जब कभी आप मुझे आता हुआ देखते तो हर्षित यावत् संतुष्ट हृदय होते थे किन्तु आज किस कारण से आप उदास यावत् चिंता में डूबे हुए हैं ? अतः यदि हे तात! मैं इस अर्थ को सुनने के योग्य हूँ तो आप इस कारण को छिपाये बिना जैसा का तैसा सत्य एवं संदेह रहित कहिए, जिससे मैं उस कारण को पार पाने का प्रयत्न करूँ अर्थात् हल करने का उपाय करूँ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org