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वर्ग २ अध्ययन १ उपसंहार
वासाइं सामण्णपरियाए, मासियाए संलेहणाए सट्ठि भत्ताइं० आणुपुव्वी कालगए। थेरा ओइण्णा । भगवं गोयमे पुच्छर, सामी कहेइ जाब सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कंते उड्डुं चंदिम० सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे । दो सागराई॥८१॥
भावार्थ - तदनंतर पद्म अनगार उस उदार - प्रधान - कठिन तपस्या के आराधन से शुष्क ( रूक्ष) शरीर वाले हो गये। मेघकुमार के समान धर्मजागरणा करते हुए पद्म अनगार को चिंतन उत्पन्न हुआ। मेघकुमार के समान ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछ कर विपुल पर्वत पर जाकर यावत् पादपोपगमन संथारा स्वीकार किया । तथारूप स्थविर भगवंतों से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन (श्रवण) किया। पूरे पांच वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली । एक मास की संलेखना से साठ भक़्त का छेदन कर अनुक्रम से काल (मृत्यु) को प्राप्त हुए । पद्म अनगार को कालगत जान कर स्थविर मुनि भगवान् के पास आये।
स्थविर मुनियों के आने पर गौतम स्वामी ने पद्म अनगार के भविष्य के विषय में पूछा - हे भगवन्! ये पद्म अनगार काल करके कहां गये?
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भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! पद्म अनगार पूर्वोक्त प्रकार से एक माह का संलेखना संथारा कर यावत् अनशन से साठ भक्तों का छेदन कर आलोचना प्रतिक्रमण कर काल के समय काल करके चन्द्रमा आदि ज्योतिषी विमानों के ऊपर सौधर्म कल्प में दो सागरोपम की स्थिति वाला देव हुआ ।
उपसंहार
से णं भंते! पउमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं पुच्छा । गोयमा ! महाविदेहे वासे जहा दढपइण्णो जाव अंतं काहि ।
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तं एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं कप्प - वडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते - तिबेमि ॥ ८२ ॥
पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ २ ॥ १॥
भावार्थ - हे भगवन्! वह पद्म देव, देव संबन्धी आयु (भव, स्थिति) के क्षय हो जाने पर देवलोक से च्यव कर कहां उत्पन्न होगा ?
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