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पुष्पिका सूत्र
दास दासियाँ थीं और बहुत से गाय, भैंस आदि थे। वह अपरिभूत-प्रभावशाली था अर्थात् उसका कोई पराभव नहीं कर सकता। ____ वह अंगति गाथापति राजा ईश्वर यावत् सार्थवाहों के द्वारा बहुत से कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, निर्णयों में, सामाजिक व्यवहारों में पूछने योग्य एवं परामर्श करने योग्य था। वह अपने कुटुम्ब का मेढिभूत, प्रमाणभूत, आधारभूत आलंबन भूत और चक्षुभूत था। अंगति गाथापति सभी कार्यों में अग्रसर-सभी कार्यों को संपादन करने वाला था।
पार्श्व प्रभु का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे णं अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जहा महावीरो णवुस्सेहे सोलसेहिं समणसाहस्सीहिं अट्ठतीसाए अज्झियासहस्सेहिं जाव कोट्ठए समोसढे। परिसा णिग्गया॥८॥
कठिन शब्दार्थ - पुरिसादाणीए - पुरुषादानीय-पार्श्वप्रभु, आइगरे - आदिकर-धर्म की : आदि करने वाले, णवुस्सेहे - नौ हाथ की अवगाहना वाले। ____ भावार्य - उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समान ही धर्म की आदि करने वाले आदि विशेषणों से युक्त, नौ हाथ की अवगाहना वाले पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु सोलह हजार साधुओं और अड़तीस हजार साध्वियों के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यावत् कोष्ठक चैत्य में पधारे। परिषद् दर्शनार्थ निकली।
अंगति अनगार बना तए णं से अंगई गाहावई इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हढे जहा कत्तिओ सेट्ठी तहा णिग्गच्छइ जाव पञ्जवासइ, धम्मं सोचा णिसम्म० ज णवरं देवाणुप्पिया! जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं जाव पव्वयामि, जहा गंगदत्ते तहा पव्वइए जाव गुत्तबंभयारी॥६॥ . ____ भावार्थ - तत्पश्चात् वह अंगति गाथापति भगवान् पार्श्वनाथ के पदार्पण का समाचार सुन कर हर्षित एवं संतुष्ट होता हुआ कार्तिक सेठ के समान अपने घर से निकला यावत् पर्युपासना की।
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