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पुष्पिका सू
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कर हर्षित एवं संतुष्ट हो, स्नान कर तथा सभी अलंकारों से अलंकृत हो पूर्ववत् उन आर्याओं के पास जाकर यावत् वंदन नमस्कार करेगी, वंदन नमस्कार करके धर्म श्रवण कर यावत् सुव्रता आर्या से कहेगी-‘हे देवानुप्रिये ! मैं राष्ट्रकूट से आज्ञा प्राप्त कर आपके पास मुंडित होकर प्रव्रज्या लेना चाहती हूँ।' तब सुव्रता आर्या उससे कहेगी - 'हे देवानुप्रिये! तुम्हें जैसा सुख हो वैसा करो किन्तु धर्मकार्य में प्रमाद मत करो । '
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उसके बाद सोमा ब्राह्मणी उन सुव्रता आर्याओं को वंदन नमस्कार करके उनके पास से निकलेगी और निकल कर जहाँ अपना घर और जहाँ राष्ट्रकूट होगा वहाँ आएगी और आकर हाथ जोड़ कर राष्ट्रकूट से पूर्ववत् पूछेगी कि - 'हे देवानुप्रिय ! मेरी इच्छा है कि आपकी आज्ञा प्राप्त कर सुव्रता आर्या के पास प्रव्रजित होऊँ ।' तब राष्ट्रकूट कहेगा- 'हे देवानुप्रिये! जैसा तुम्हें सुख हो करो किन्तु धर्म कार्य में विलंब मत करो।'
तदनन्तर वह राष्ट्रकूट विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम आदि चार प्रकार का भोजन बनवा कर अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन बंधुओं को आमंत्रित करेगा और आदर सत्कार के साथ उन्हें भोजन करायेगा। जिस प्रकार पूर्वभव में सुभद्रा आर्या प्रव्रजित हुई थी उसी प्रकार वह भी प्रव्रजित होगी और आर्या हो कर ईर्यासमिति आदि से युक्त हो यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी होगी।
सोमदेव के रूप में उपपात
तणं सा सोमा अज्जा सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ अहिज्जित्ता बहूहिं छट्ठट्ठमदसमदुवालस जाव भावेमाणी बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सामाणियदेवत्ताए उववज्जिहि । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं सोमस्सवि देवस्स दो साग़रोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १३६ ॥
भावार्थ - तत्पश्चात् वह सोमा आर्या उन सुव्रता आर्याओं के समीप सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन करेगी और बहुत से षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश भक्त आदि विचित्र तप कर्म से आत्मा भावित करती हुई बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन करेगी और उसके बाद मासिक संलेखना से साठ भक्तों को अनशन से छेदन कर आलोचना प्रतिक्रमण पूर्वक समाधि भावों में काल के समय
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