Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वर्ग ३ अध्ययन ६ मणिभद्र देव का पूर्व भव
१२७
छडं अज्झयणं
छठा अध्ययन .. जइ णं भंते! समणेणं० उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसरिए॥१४४॥ __ भावार्थ - जम्बू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा- हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के पांचवें अध्ययन का यह भाव फरमाया है तो हे भगवन्! छठे अध्ययन का प्रभु ने क्या भाव फरमाया है?
सुधर्मा स्वामी ने फरमाया - हे जम्बू! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। भगवान् महावीर स्वामी का उस नगर में पर्दापण हुआ। परिषद् भगवान् के वंदन करने के लिए निकली।
मणिभद्र देव का पूर्व भव तेणं कालेणं तेणं समएणं माणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभदंसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहिं जहा पुण्णभद्दो तहेव आगमणं, णविही, पुव्वभवपुच्छा। मणिवई गयरी, माणिभद्दे गाहावई, थेराणं अंतिए पव्वज्जा, एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूई वासाई परियाओ, मासिया संलेहणा, सर्व्हि भत्ताइं०, माणिभद्दे विमाणे उववाओ, दो सागरोवमाई ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। णिक्खेवओ॥१४५॥
छठें अज्झयणं समत्तं॥३॥६॥ भावार्थ - उस काल उस समय में मणिभद्र देव सुधर्मा सभा के मणिभद्र सिंहासन पर चार हजार सामानिक देवों के साथ बैठा हुआ था। पूर्णभद्र देव के समान मणिभद्र देव भी भगवान् के समवसरण में आया और नाट्य विधि दिखा कर लौट गया। गौतम स्वामी ने मणिभद्र देव की दिव्य देव ऋद्धि के विषय में पूर्ववत् प्रश्न कियों) भगवान् ने कूटाकारशाला के दृष्टान्त से उसका उत्तर दिया। जब गौतम स्वामी ने मणिभद्र देव के पूर्वभव के विषय में पूछा तो भगवान् ने फरमाया -
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