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पुष्पिका सूत्र
उपसंहार एवं खलु गोयमा! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमण्णागया।
पुण्णभद्दस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
पुण्णभद्दे णं भंते! देवे ताओ देवलोयाओ जाव कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ। णिक्खेवओ॥१४३॥
____पंचमं अज्झयणं समत्तं॥३॥५॥ भावार्थ - हे गौतम! पूर्णभद्र देव ने इस प्रकार इस दिव्य देव ऋद्धि आदि को प्राप्त किया।
गौतम स्वामी ने पुनः पृच्छा की - हे भगवन्! पूर्णभद्र देव की स्थिति कितने काल की कही गई है?
भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! पूर्णभद्र देव की स्थिति दो सागरोपम की है। हे भगवन्! यह पूर्णभद्र देव, देवलोक से च्यव कर कहां जायेगा? कहां उत्पन्न होगा? ,
भगवान् ने कहा - हे गौतम! यह पूर्णभद्र देव महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा।
सुधर्मा स्वामी ने फरमाया-हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के पांचवें अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है।
॥ पांचवां अध्ययन समाप्त॥
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