Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ १२६ पुष्पिका सूत्र उपसंहार एवं खलु गोयमा! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमण्णागया। पुण्णभद्दस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। पुण्णभद्दे णं भंते! देवे ताओ देवलोयाओ जाव कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ। णिक्खेवओ॥१४३॥ ____पंचमं अज्झयणं समत्तं॥३॥५॥ भावार्थ - हे गौतम! पूर्णभद्र देव ने इस प्रकार इस दिव्य देव ऋद्धि आदि को प्राप्त किया। गौतम स्वामी ने पुनः पृच्छा की - हे भगवन्! पूर्णभद्र देव की स्थिति कितने काल की कही गई है? भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! पूर्णभद्र देव की स्थिति दो सागरोपम की है। हे भगवन्! यह पूर्णभद्र देव, देवलोक से च्यव कर कहां जायेगा? कहां उत्पन्न होगा? , भगवान् ने कहा - हे गौतम! यह पूर्णभद्र देव महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा। सुधर्मा स्वामी ने फरमाया-हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के पांचवें अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है। ॥ पांचवां अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174