Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 140
________________ वर्ग ३ अध्ययन ५ १२३ समय काल करके देवेन्द्र देवराज शक्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न होगी। वहाँ किसी किसी देव की दो सागरोपम की स्थिति है। उस सोमदेव की भी दो सागरोपम की स्थिति होगी। उपसंहार से णं भंते! सोमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे जाव अंतं काहिइ। णिक्खेवओ॥१४०॥ चउत्थं अज्झयणं समत्तं॥३॥ ४॥ भावार्थ - यह सुन कर गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा.- हे भगवन्! वह सोम देव आयु, भवं और स्थिति क्षय होने पर उस देवलोक से च्यव कर कहाँ जायेगा? कहाँ उत्पन्न होगा?" - हे गौतम! वह सोम देव देवलोक से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा यावत् सभी दुःखों का अंत करेगा। ____ सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे आयुष्मन् जम्बू! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका सूत्र के चतुर्थ अध्ययन का निरूपण किया है। ॥ चौथा अध्ययन समाप्त॥ पंचमं अज्झयणं पांचवां अध्ययन जइ णं भंते! समणेणं० उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसरिए। परिसा णिग्गया॥१४१॥ भावार्थ - जंबू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा - हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के चतुर्थ अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है तो हे भगवन्! पुष्पिका के पंचम अध्ययन का प्रभु ने क्या भाव फरमाया है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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