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वर्ग ३ अध्ययन ४ सुभद्रा का स्वतन्त्राचरण
१११ ........................................................... समझाने की कोशिश की और अकल्पनीय कार्य की आलोचना-प्रायश्चित्त ग्रहण करने को कहा। सुव्रता आर्या के उपदेश का सुभद्रा आर्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह पूर्ववत् बाल मनोरंजन करती रही तो साथी श्रमणियाँ उसकी हीलना, निंदा आदि करती है और उसे ऐसा अकृत्य करने के लिए बार-बार रोकती हैं।
मूल पाठ में प्रयुक्त हीलेंति आदि का अर्थ इस प्रकार समझना चाहिये -
हीलेंति - 'तुम उत्तम कुल में जन्म लेकर और उत्तम संयम अवस्था में आकर ऐसे तुच्छ कार्य करती हो'- इस प्रकार हीलना करती हैं। .
जिंदंति - कुत्सित शब्द बोल कर उसका दोष प्रकट करती हुई 'निंदना' करती हैं। खिसंति - हाथ मुख आदि को विकृत करके अपमान करती हुई 'खिंसना' करती हैं।
गरहंति - गुरुजनों के समीप उनके दोषों का उद्घाटन करती हुई तिरस्कार रूप 'गर्हणा' करती हैं।
सुभद्रा का स्वतन्त्राचरण तए णं ती(ए)से सुभद्दाए अज्जाए समणीहिं णिग्गंथीहिं हीलिज्जमाणीए जाव अभिक्खणं अभिक्खणं एयमé णिवारिज्जमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुष्पन्जित्था-जया णं अहं अगारवासं वसामि तया णं अहं अप्पवसा, जप्पभिई च णं अहं मुण्डा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया तप्पभिई च णं अहं परवसा, पुग्विं च समणीओ णिग्गंथीओ आटेंति परिजाणेति इयाणिं णो आढाएंति णो परिजाणंति, तं सेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते सुव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिणिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, एवं संपेहेइ संपेहित्ता कल्लं जाव जलंते सुब्बयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विरहइ। तए णं सा सुभद्दा अज्जा अजाहिं अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई बहुजणस्स चेडरूवेसु मुच्छिया जाव अब्भंगणं च जाव णत्तिपिवासं च पच्चणुभवमाणी विहरइ॥१२६॥
कठिन शब्दार्थ - अप्पवसा - स्वाधीन (स्वतंत्र), परवसा - पराधीन, पाडिएक्कं - छोड़ कर-अलग होकर, अणिवारिया - नहीं रोके जाने से, सच्छंदमई - स्वच्छंद मति।
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