Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 130
________________ वर्ग ३ अध्ययन ४ गौतम स्वामी की जिज्ञासा ११३ अवसन्नविहारिणी, कुशीला, कुशीलविहारिणी, संसक्ता, संसक्तविहारिणी और स्वच्छंद तथा स्वच्छंद-विहारिणी हो गई। बहुत वर्षों तक श्रमणी पर्याय का पालन किया और पालन करके अर्द्ध मासिक संलेखना द्वारा आत्मा को सेवित कर तीस भक्तों को अनशन द्वारा छेद कर अकरणीय पाप स्थान-सावद्य कार्यों की आलोचना प्रतिक्रमण किए बिना ही काल के समय काल करके सौधर्म कल्प के बहुपुत्रिका विमान की उपपात सभा में देवदूष्य से आच्छादित देव शय्या पर अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र अवगाहना वाली बहुपुत्रिका देवी के रूप में उत्पन्न हुई। तए णं सा बहुपुत्तिया देवी अहुणोववण्णमेत्ता समाणी पंचविहाए पन्नत्तीए जाव भासामणपज्जत्तीए, एवं खलु गोयमा! बहुपुत्तियाए देवीए सा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमण्णागया॥१२८॥ भावार्थ - तत्पश्चात् वह बहुपुत्रिका देवी भाषा-मनःपर्याप्ति आदि पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त कर उत्कृष्ट सात हाथ की अवगाहना वाली देवी होकर देवी अवस्था में विचरने लगी। हे गौतम! इस प्रकार बहुपुत्रिका देवी ने वह दिव्य देव ऋद्धि एवं देव समृद्धि, देव द्युति प्राप्त की है यावत् उसके सम्मुख हुई है। गौतम स्वामी की जिज्ञासा ___ से केणगुणं भंते! एवं वुच्चइ-बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी? . गोयमा! बहुपुत्तिया णं देवी जाहे जाहे सक्कस्स देविंदस्स देवरणो उवत्थाणियणं करेइ ताहे ताहे बहवे दारए य दारियाओ य डिम्भए य डिम्भियाओ य विउव्वइ विउव्वित्ता जेणेव सक्के देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविलि दिव्वं देवज्जुइं दिव्वं देवाणुभावं उवदंसेइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी? . बहुपुत्तियाए णं भंते! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। बहुपुत्तिया णं भंते! देवी लओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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