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वर्ग ३ अध्ययन ४ सुभद्रा की जिज्ञासा
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सुव्रता आर्या का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ णं अजाओ इरियासमियाओ भासासमियाओ एसणासमियाओ आयाणभण्डमत्तणिक्खेवणासमियाओ उच्चारपासवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-पारिट्ठावणासमियाओ मणगुत्तीओ वयगुत्तीओ कायगुत्तीओ गुतिंदियाओ गुत्तबंभयारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणीओ गामाणुगामं दूइजमाणीओ जेणेव वाणारसी णयरी तेणेव उवागया उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा० विहरंति॥११४॥
___ भावार्थ - उस काल उस समय में ईर्यासमिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति, उच्चार प्रस्रवण खेल जल्ल सिंघाण परिष्ठापना समिति से समित, मनगुप्ति, वचन गुप्ति और कायगुप्ति से गुप्त, इन्द्रियों का दमन करने वाली, गुप्त ब्रह्मचारिणी, बहुश्रुताबहुत शास्त्रों को जानने वाली, शिष्याओं के बहुत परिवार से युक्त सुव्रता नाम की आर्या पूर्वानुपूर्वी क्रम से-तीर्थंकर परम्परा के अनुरूप-चलती हुई ग्रामानुग्राम विहार करती हुई जहाँ वाराणसी नगरी थी वहाँ आई। वहाँ आकर कल्पानुसार यथायोग्य अवग्रह आज्ञा लेकर तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी।
सुभद्रा की जिज्ञासा तए णं तासिं सुव्वयाणं अजाणं एगे संघाडए वाणारसी णयरीए उच्चणीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे भद्दस्स सत्थवाहस्स गिहं अणुपविटे। तए णं सुभद्दा सत्यवाही ताओ अजाओ एजमाणीओ पासइ पासित्ता हट्ट० खिप्पामेव आसणाओ अब्भुट्टेइ अब्भुट्टित्ता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ अणुगच्छित्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं अजाओ! भद्देणं सत्थवाहेणं सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, णो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयायामि, तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव एत्तो एगमवि ण पत्ता, तं तुन्भे अजाओ!
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