Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 119
________________ १०२ पुष्पिका सूत्र ........................................................... बहुणायाओ बहुपढियाओ बहूणि गामागरणगर जाव संणिवेसाई आहिण्डह, बहूणं. राईसरतलवर जाव सत्यवाहप्पभिईणं गिहाई अणुपविसह, अत्थि से केइ कहिंचि विजापओए वा मंतप्पओए वा वमणं वा विरेयणं वा वत्थिकम्मं वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धे, जेणं अहं दारगं वा दारियं वा पयाएजा? ॥११५॥ _____ कठिन शब्दार्थ - उच्चणीयमज्झिमाई - उच्च, नीच और मध्यम, भिक्खायरियाए - भिक्षाचर्या के लिए, अडमाणए - भ्रमण करते हुए, सत्तट्ठपयाई - सात-आठ डग (कदम), बहुणायाओ - बहुत ज्ञानी, बहुपढियाओ - बहुत पढी लिखी, आहिण्डह - घूमती हो, विज्जापओए - विद्या प्रयोग, मंतप्पओए - मंत्र प्रयोग, वमणं - वमन, विरेयणं - विरेचन, वत्थिकम्मं - वस्तिकर्म, ओसहे - औषध, भेसज्जे - भेषज, उवलद्धे - प्राप्त हुआ है। भावार्थ - तत्पश्चात् सुव्रता आर्या का एक सिंघाडा वाराणसी नगरी के उच्च-नीच-मध्यम कुलों में गृह समुदानी-अनेक घरों से ली जाने वाली भिक्षाचर्या के लिए परिभ्रमण करता हुआ भद्र सार्थवाह के घर में आया। तब उस सुभद्रा सार्थवाही ने उन आर्याओं को आते हुए देखा, देख कर वह हर्षित और संतुष्ट होती हुई शीघ्र ही अपने आसन से उठी, उठ कर सात आठ कदम उनके सामने गई, सामने जा कर उनको वंदना नमस्कार किया। फिर विपुल अशन, पाम, खादिम, स्वादिम आहार से प्रतिलाभित कर इस प्रकार बोली - 'हे आर्याओ! मैं भद्र सार्थवाह के साथ विपुल भोगों को भोगती हुई विचर रही हूँ किन्तु मैंने आज तक एक भी बालक या बालिका को जन्म नहीं दिया है। वे माताएं धन्य हैं, पुण्यशालिनी हैं यावत् मैं अधन्या अपुण्या हूँ कि उनमें से एक भी सुख को प्राप्त नहीं कर सकी हूँ। __हे आर्याओ! आप बहुत ज्ञानी हैं, बहुत पढ़ी लिखी हैं और बहुत से ग्रामों यावत् सन्निवेशों में विचरती हैं बहुत से राजा, ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि के घरों में भिक्षार्थ आपका जाना होता है तो क्या कहीं कोई विद्या प्रयोग, मंत्र प्रयोग, वमन, विरेचन, वस्तिकर्म, औषध या भेषज आपको मिला है जिससे मेरे बालक या बालिका का जन्म हो सके। आर्याओं का समाधान तए णं ताओ अजाओ सुभदं तत्थवाहिं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिए! समणीओ णिग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव गुत्तबम्भयारिणीओ, णो खलु कप्पइ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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