________________
१००
पुष्पिका सूत्र .......................................................... भद्देणं सत्यवाहेणं सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, णो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयाया, तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव सुलद्धे णं तासिं अम्मयाणं मणुयजम्मजीवियफले, जासिं मण्णे णियकुच्छिसंभूयगाई थणदुद्धलुद्धगाई महुरसमुल्लावगाणि मम्मण(मंजुल)प्पजम्पियाणि थणमूलकक्खदेसभागं अभिसरमाणगाणि पण्हयंति, पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊणं उच्छं गणिवेसियाणि देंति, समुल्लावए सुमहुरे पुणो पुणो मम्मणप्पभणिए, अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा एत्तो एगमवि ण पत्ता, . ओहय० जाव झियाइ॥११३॥ ___ कठिन शब्दार्थ- मणुयजम्मजीवियफले - मनुष्य जन्म और जीवन का फल, णियकुच्छिसंभूयगाई- निज की कुक्षि से उत्पन्न, थणदुद्धलुद्धगाई - स्तन के दूध की लोभी, महुरसमुल्लावगाणि - मन को लुभाने वाली वाणी का उच्चारण करने वाली, मम्मणप्पजम्पियाणिहृदयस्पर्शी तोतली बोली बोलने वाली, थणमूलकक्खदेसभागं - स्तन मूल और कांख के बीच भाग में, अभिसरमाणगाणि - अभिसरण करने वाली, पण्हयंति - दूध पिलाती है, कोमल कमलोवमेहिंकमल के समान कोमल, हत्येहिं - हाथों से, उच्छंगणिवेसियाणि - गोद में बिठलाती है।
भावार्थ - तदनन्तर किसी समय मध्यरात्रि में कुटुम्ब जागरणा करते हुए उस सुभद्रा सार्थवाही को इस प्रकार आंतरिक, चिंतित, प्रार्थित और मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि - मैं भद्र सार्थवाह के साथ विपुल भोगों को भोगती हुई विचरण कर रही हूँ। किन्तु आज दिन तक मैंने एक भी बालक या बालिका को जन्म नहीं दिया है। वे माताएं धन्य हैं यावत् पुण्यशालिनी हैं उन्होंने पुण्योपार्जन किया है, उन माताओं ने अपने मनुष्य जन्म और जीवन का फल अच्छी तरह पाया है जो अपनी निज की कुक्षि से उत्पन्न, स्तन दूध की लोभी, मन को लुभाने वाली वाणी का उच्चारण करने वाली, हृदय स्पर्शी तोतली बोली बोलने वाली, स्तन मूल और कांख के बीच भाग में अभिसरण करने वाली संतान को दूध पिलाती है फिर कमल के समान कोमल हाथों से लेकर उसे गोद में बिठलाती है, कानों को प्रिय लगने वाले मधुर मधुर संलापों से अपना मनोरंजन करती है मन को प्रसन्न करती है किन्तु मैं भाग्यहीन हूँ, पुण्यहीन हूँ, मैंने पूर्वजन्म में पुण्योपार्जन नहीं किया इसलिए संतान संबंधी एक भी सुख मुझे प्राप्त नहीं है इस प्रकार के विचारों से निरुत्साह-भग्न मनोरथ होकर यावत् आर्तध्यान करने लगी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org