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पुष्पिका सूत्र .............................. .......................... के दर्शनार्थ जाने योग्य विमान की विकुर्वणा करने की आज्ञा दी। उनके आदेशानुसार आभियोगिक देवों ने यान-विमान की विकुर्वणा की। वह यान-विमान एक हजार योजन विस्तीर्ण था। शेष सारा वर्णन सूर्याभ देव के यान-विमान के समान कह देना चाहिये। तब वह बहुपुत्रिका देवी सूर्याभ देव के समान अपनी समस्त ऋद्धि समृद्धि के साथ यावत् उत्तर दिशा के निर्याण मार्ग से निकल कर एक हजार योजन की वेग वाली गति से भगवान् के समवसरण में उपस्थित हुई।
भगवान् ने धर्मदेशना फरमाई। धर्म देशना सुन कर उस बहुपुत्रिका देवी ने अपनी दाहिनी भुजा फैलाई और फैला कर एक सौ आठ देवकुमारों की विकुर्वणा की तथा बायीं भुजा फैला कर एक सौ आठ देव कुमारिकाओं की विकुर्वणा की। उसके बाद बहुत से दारक दारिकाओं (बड़ी उम्र के बालक बालिकाओं) तथा डिम्भक-डिम्भिकाओं (छोटी उम्र के बालक बालिकाओं) की विकुर्वणा की तथा सूर्याभ देव के समान नाट्य विधियां दिखा कर वापिस लौट गई।
विवेचन - किन्हीं प्रतियों में जोयणसाहस्सिएहिं विग्गेहेहिं का अर्थ 'एक हजार योजन का वैक्रिय शरीर बना कर' किया है किन्तु यह वर्णन रायपसेणी सूत्र में देख लेना चाहिए वहाँ पर सूर्याभ के लिए एक लाख योजन प्रमाण वेग वाली यावत् उत्कृष्ट दिव्य देव गति से नीचे उतर कर गमन करते हुए पीछे असंख्यात द्वीप समुद्रों के बीचों बीच से होता हुआ नन्दीश्वर द्वीप और उसकी दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित रतिकर पर्वत पर आया। ऐसा वर्णन है। अतः यहाँ पर भी ‘एक हजार योजन की वेग.वाली गति से आने का समझना चाहिए। मूल पाठ में “विग्गहेहिं" शब्द आया है जिसका अर्थ "वेग वाली गति के द्वारा" समझना चाहिए। वैक्रिय शरीर बनाकर ऐसा अर्थ नहीं करना चाहिए।
गौतम स्वामी की जिज्ञासा । भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ। कूडागारसाला। बहुपुत्तियाए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी पुच्छा जाव अभिसमण्णागया? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी णामं णयरी, अम्बसालवणे चेइए। तत्थ णं वाणारसीए णयरीए भद्दे णामं सत्यवाहे होत्या, अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं भद्दस्स सुभद्दा णामं भारिया सुउमाल० वंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया यावि होत्था॥११२॥
कठिन शब्दार्थ - सत्यवाहे - सार्थवाह, वंझा - वंध्या, अवियाउरी - एक भी संतान को
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