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पुष्पिका सूत्र
गुण विराधना है। अंगति अनगार ने उत्तरगुण विराधना करके आलोचना नहीं की इसलिए ज्योतिषी देव हुए। ___तए णं से चंदे जोइसिंदे जोइ(सि)सराया अहुणोववण्णे समाणे पंचविहाए पजत्तीए पजत्तीभावं गच्छइ, तंजहा-आहारपजत्तीए सरीरपजत्तीए इंदियपजत्तीए सासोसासपजत्तीए भासामणपज्जत्तीए॥१॥
भावार्थ - तब अद्युतोत्पन्न ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र पांच प्रकार की पर्याप्तियोंआहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति और भाषामन पर्याप्तिसे पर्याप्त भाव को प्राप्त हुआ।
उपसंहार चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो केवइयं कालं ठिई पण्णता?
गोयमा! पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं। एवं खलु गोयमा! चंदस्स जाव . जोइसरण्णो सा दिव्वा देविड्डी०।
चंदे णं भंते! जोइसिंदे जोइसराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ५। णिक्खेवओ॥२॥ .
पढमं अज्झयणं समत्तं॥३॥१॥ भावार्थ - गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछा- "हे भगवन्! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र की स्थिति कितने काल की कही गई है?" ____ हे गौतम! ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र की स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की कही गई है। इस प्रकार हे गौतम! उस ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज ने वह दिव्य देव ऋद्धि प्राप्त की है।
हे भगवन्! चन्द्रदेव अपनी आयु, भव तथा स्थिति के क्षय होने पर कहाँ जाएंगे? कहाँ उत्पन्न होंगे? हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होंगे।
हे आयुष्मन् जम्बू! इस प्रकार मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह भाव निरूपित किया है। ऐसा मैं कहता हूँ।
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