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वर्ग ३ अध्ययन ३ सोमिल मिथ्यात्वी बना
७६ ........................................................... हेतु आदि पूछू ऐसा विचार कर शिष्यों को अपने साथ लिये बिना ही सोमिल अपने घर से निकला यावत् भगवान् की सेवा में पहुँच कर इस प्रकार बोला-'हे भगवन्! आप के यात्रा है? आपके यापनीय है? आपके लिये सरिसव, माष और कुलत्थ भक्ष्य है या अभक्ष्य? आप एक है या दो आदि' यावत् सोमिल संबुद्ध हुआ-बोध युक्त हो श्रावक धर्म को स्वीकार कर स्वस्थान लौट गया।
विवेचन - चन्द्र और सूर्य की तरह शुक्रावतंसक विमान का स्वामी शुक्र भी भगवान् महावीर स्वामी के समवशरण में आया और ऋद्धि समृद्धि से युक्त नाटक प्रदर्शन कर चला गया। शुक्र के गमन के उपरान्त गौतम स्वामी ने जिज्ञासा वश भगवान् से उसके पूर्व भव का वृत्तांत पूछा। भगवान् ने फरमाया-वाराणसी नगरी में सोमिल नामका ब्राह्मण था। वह अपने समय का अद्वितीय कर्म काण्डी, वेद वेदांगों में पारंगत तथा यज्ञ क्रियाओं में निपुण था। एक बार वाराणसी नगरी में भगवान् पार्श्वनाथ का पदार्पण हुआ। सोमिल ब्राह्मण अपने अहं की तुष्टि तथा विद्वानों ने अपना एकाधिकार सिद्ध करने के लिए भगवान् को पराजित करने के उद्देश्य से उनके पास पहुँचा किन्तु भगवान् पार्श्वनाथ प्रभु ने सोमिल द्वारा पूछे गये प्रश्नों का स्याद्वादवाणी से युक्ति युक्त समाधान किया। भगवान् के उपदेश को सुन कर सोमिल ने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया। .
सोमिल द्वारा प्रभु से पूछे गये प्रश्नोत्तरों का विस्तृत वर्णन भगवती सूत्र के अठारहवें शतक के दसवें उद्देशक में तथा ज्ञाताधर्म कथांग के शैलक नामक पांचवें अध्ययन में देख लेना चाहिए।
सोमिल मिथ्यात्वी बना ... तए णं पासे णं अरहा अण्णया कयाइ वाणारसीओ णयरीओ अम्बसालवणाओ
चेइयाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से सोमिले माहणे अण्णया कयाइ असाहुदंसणेण य अपञ्जवासणयाए य मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवड्डमाणेहिं परिवडमाणेहिं सम्मत्तपञ्जवेहिं परिहायमाणेहिं परिहायमाणेहिं मिच्छत्तं च पडिवण्णे॥६६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - असाहुदंसणेण - साधु का दर्शन नहीं करने से, अपञ्जवासणयाए - पर्युपासना नहीं करने से, मिच्छत्तपञ्जवेहिं - मिथ्यात्व पर्यायों के, परिवढमाणेहिं - प्रवर्द्धमान होने (बढ़ने)से, सम्मत्तपनवेहिं - सम्यक्त्व पर्यायों के, परिहायमाणेहिं - परिहीयमान होने (घटने) से।
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