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पुष्पक
भावार्थ - तत्पश्चात् किसी समय भगवान् पार्श्व प्रभु वाराणसी नगरी के आम्रशालवन उद्यान से निकले और निकल कर जनपद में विहार करने लगे ।
उसके बाद वह सोमिल ब्राह्मण किसी समय असाधुओं के दर्शन से तथा सुसाधुओं की पर्युपासना नहीं करने से मिथ्यात्व पर्यायों के बढ़ने और सम्यक्त्व पर्यायों के घटने के कारण मिथ्यात्वी हो गया।
विवेचन - वृक्ष उचित पानी को पाकर पल्लवित और पुष्पित होकर सुन्दर लगता है अन्यथा सूख जाता है। सोमिल की 'यही दशा हुई। भगवान् के उपदेश से वह बोधि को पाकर सम्यक्त्वी (श्रावक) बना किन्तु कालान्तर से सुसाधुओं के दर्शन और पर्युपासना नहीं होने के कारण पुनः मिथ्यात्व के रंग में रंग गया।
सोमिल का संकल्प
तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं वाणारसीए णयरीए सोमिले णामं माहणे अचंतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाइं चिण्णाई, वेया य अहिया, दारा आहूया, पुत्ता जणिया, इड्डीओ समाणीयाओ, पसुव (बन्) धाकया, जण्णा जेट्ठा, दक्खिणा दिण्णा, अतिही पूइया, अग्गी हूया, जूवा णिक्खित्ता, तं सेयं खलु मम इयाणि कल्लं जाव जलंते वाणारसीए
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यरीए बहिया बहवे अम्बारामा रोवावित्तए, एवं माउलिंगा बिल्ला कविट्ठा चिंचा पुप्फारामा रोवावित्तए, एवं संपेहेइ संपेहित्ता कल्लं जाव जलते वाणारसीए णयरीए बहिया अम्बारामे य जाव पुष्फारामे य रोवावेइ । तए णं बहवे अम्बारामा य जाव पुप्फारामा य अणुपुव्वेणं सारक्खिजमाणा संगोविजमाणा संविज्जमाणा आरामा जाया किण्हा किण्होभासा जाव रम्मा महामेहणिकुरम्बभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणसिरीया अईव अईव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ९७ ॥
कठिन शब्दार्थ - वयाइं - व्रतों को, चिण्णाई - ग्रहण किया, अहिया - अध्ययन किया, दारा पत्नी, आहूया लाया, जणिया जन्म दिया, समाणीयाओ संग्रह किया,
पसुवधा
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