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वर्ग ३ अध्ययन ३ उपसंहार ........................................................... छेएइ छेइत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते विराहियसम्मत्ते कालमासे कालं किच्चा सुक्कवडिंसए विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि जाव ओगाहणाए सुक्कमहग्गहत्ताए उववण्णे॥१०८॥
भावार्थ - तत्पश्चात् सोमिल ने बहुत से चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम भक्त यावत् अर्द्ध मासखमण, मासखमण रूप विचित्र तप कर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रावक पर्याय का पालन किया अंत में अर्द्ध मासिक संलेखना से आत्मा को भावित कर तीस भक्त (आहार) को अनशन से छेदित कर उस पूर्वकृत पाप की आलोचना और प्रतिक्रमण नहीं करता हुआ सम्यक्त्व की विराधना के कारण काल के समय काल करके शुक्रावतंसक विमान की उपपात सभा में देवशय्या पर यावत् जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना से शुक्र महाग्रह देव रूप में उत्पन्न हुआ।
उपसंहार , तए णं से सुक्के महग्गहे अहुणोववण्णे समाणे जाव भासामणपज्जत्तीए....। एवं खलु गोयमा! सुक्केणं० सा दिव्वा जाव अभिसमण्णागया। एगं पलिओवमं ठिई। ___ सुक्के णं भंते! महग्गहे तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ५। णिक्खेवओ॥१०॥
तइयं अज्झयणं समत्तं ॥३॥ ३॥ ____भावार्थ - तत्पश्चात् वह शुक्र महाग्रह देव तत्काल उत्पन्न होकर यावत् भाषा-मन पर्याप्ति आदि पांचों पर्याप्तियों से पर्याप्त भाव को प्राप्त हुआ।
हे गौतम! इस प्रकार उस शुक्र महाग्रह ने दिव्य देव ऋद्धि यावत् दिव्य प्रभाव को प्राप्त किया है। उसकी वहाँ एक पल्योपम की स्थिति है।
गौतम स्वामी ने पुनः पृच्छा की- हे भगवन्! शुक्र महाग्रह देव आयु, भव और स्थिति का क्षय कर कहाँ जायेगा? कहाँ उत्पन्न होगा?
भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! यह शुक्र महाग्रह देव महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर यावत् सिद्ध होगा।
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