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वर्ग ३ अध्ययन ३ सोमिल द्वारा तापस प्रव्रज्या ग्रहण
कर नहाने वाले, संपक्खालगा - संप्रक्षालक - मिट्टी आदि से शरीर को मल कर नहाने वाले, दक्खिणकूला - दक्षिणकूल- दक्षिणी तट पर रहने वाले, उत्तरकूला - उत्तरकूल - उत्तरी तट पर रहने वाले, संखधमा - शंखध्मा-शंख बजा कर भोजन करने वाले, कूलधमा कूलध्मा-तट पर खड़े होकर आवाज लगाने के पश्चात् भोजन करने वाले, मियलुद्धया- मृगलुब्धक- हिरणों का मांस खाने वाले, हत्थितावसा - हस्ती तापस- हाथी को मार कर उसका मांस खा कर जीवन व्यतीत करने वाले, उद्दण्डा - उद्दण्डक-डंडे को ऊंचा करके चलने वाले, दिसापोक्खिणो- दिशा प्रोक्षिक- जल सींच कर दिशाओं की पूजा करने वाले, वक्कवासिणो - वल्कवासी- वृक्ष की छाल पहनने वाले, बिलवासिणोभूमि नीचे की खोह में रहने वाले, जलवासिणो जलवासी - जल में रहने वाले, रुक्खमूलिया वृक्षमूलक-वृक्ष के मूल में रहने वाले, अम्बुभक्खिणो- जल भक्षी जल मात्र का आहार करने वाले, वाभक्खिणो - वायु मात्र से जीवित रहने वाले - वायु भक्षी, सेवालभक्खिणो - शैवालभक्षीशैवाल-काई को खाने वाले, तयाहारा - त्वगाहार - नीम आदि की त्वचा खाने वाले, पत्ताहारापत्राहार-बेल आदि के पत्ते का आहार करने वाले, पुप्फाहारा - पुष्पाहार-कुंद, सोहंजन, गुलाब आदि फूलों का आहार करने वाले, फलाहारा - केला आदि फल खाने वाले, बीयाहारा - कुम्हडा आदि का बीज खाने वाले, परिसडियकंदमूलतयपत्तपुप्फफलाहारा सड़े हुए कंद, मूल, त्वचा, पत्ते, फूल और फल खाने वाले, जलाभिसेयकढिणगायभूया - जल के अभिषेक से कठिन शरीर वाले, आयावणाहि - आतापना से, पंचग्गितावेहिं पंचाग्नि ताप से, इंगालसोल्लियं - अंगार . शौल्य - अंगारों में पकी हुई- अंगारे में शूल पर रख कर पकाये हुए मांस, कंदुसोल्लियं - कन्दुशौल्यकन्दू-चावल आदि भूनने के पात्र में घृत डाल कर शूल पर पकाये हुए मांस, अणिक्खित्तेणं - अन्तर रहित- निरन्तर, पगिज्झिय - उठा कर, दिसाचक्कवालेणं - दिशा चक्रवाल, सूराभिमुहस्स - सूर्य अभिमुख, आयाणभूमीए - आतापना भूमि में ।
भावार्थ - उसके बाद किसी दूसरे समय कुटुम्ब जागरणा करते हुए उस सोमिल ब्राह्मण को इस प्रकार का आंतरिक विचार उत्पन्न हुआ कि मैं वाराणसी नगरी का उच्च कुल में उत्पन्न ब्राह्मण हूँ। मैंने व्रतों का पालन किया यावत् यूप स्थापित किये। तत्पश्चात् मैंने वाराणसी नगरी के बाहर बहुत से आम के बगीचे यावत् फूलों के बगीचे लगवाए। लेकिन अब मुझे यह उचित है कि कल रात बीतने * के बाद प्रातःकाल होते ही बहुत से लोहे की कडाहियाँ, कुडछियाँ एवं तापसों के लिए ताम्बे के पात्रों-बर्त्तनों को बनवा कर, विपुल अशन-पान - खादिम - स्वादिम बनवा कर अपने मित्रों, ज्ञाति बन्धुओं आदि को आमंत्रित कर और उन्हें भोजन करवा कर सत्कार सम्मान करके उन्हीं मित्र
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