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वर्ग ३ अध्ययन १ चन्द्रदेव भगवान् के समवसरण में
भावार्थ - जम्बू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पुनः पूछा- हे भगवन् ! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका नामक तृतीय उपांग के दस अध्ययन फरमाये हैं तो हे भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम अध्ययन का क्या भाव फरमाया है? सुधर्मा स्वामी ने प्रत्युत्तर में कहा
हे जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था । वहाँ गुणाशिलक नामक चैत्य था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था । उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। दर्शनार्थ परिषद् निकली ।
चन्द्रदेव भगवान् के समवसरण में
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएणाणे आभोएमाणे पासइ पासित्ता समणं भगवं महावीरं जहा सूरिया आभिओगे देवे सहावेत्ता जाव - सुरिंदाभिगमणजोग्गं करेत्ता तमाणत्तियं पञ्चष्पिणंति । सूसरा घंटा जाव विउव्वणा, णवरं जाणविमाणं जोयणसहस्सवित्यिण्णं अद्धतेवद्विजोयणसमूलियं, महिंदज्झओ पणुवीसं जोयणमूसिओ, सेसं जहा सूरियाभस्स जाव आगओ, णट्टविही तहेव पडिओ ॥ ८६ ॥
कठिन शब्दार्थ - जोइसिंदे - ज्योतिषियों के इन्द्र, जोइसराया - ज्योतिषियों के राजाज्योतिष्कराज, चंदवर्डिसए - चन्द्रावतंसक, केवलकप्पं- केवल कल्प (संपूर्ण), विउलेणं विपुल, ओहिणा - अवधिज्ञान से, सुरिंदाभिगमणजोग्गं - सुरेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य, सूसरा - सुस्वरा, णट्टविहि- नाट्यविधि, महिंबज्झओ - महेन्द्र ध्वज ।
भावार्थ - उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज - ज्योतिषियों के राजा, ज्योतिष्केन्द्रज्योतिषियों के इन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर बैठ कर चार हजार सामानिक देवों यावत् सपरिवार भोगों को भोगता हुआ विचर रहा था । तब उसने अप विपुल अवधि ज्ञान से देखते हुए, इस सम्पूर्ण जंबूद्वीप को देखा, तभी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को भी देखा तथा भगवान् के दर्शनार्थ जाने का विचार कर सूर्याभदेव के समान अपने आभियोगिक
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