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कल्पावतंसिका सूत्र
हे गौतम! पद्म देव देवलोक से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा यावत् दृढ़प्रतिज्ञ के समान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा, सर्व दुःखों का अन्त करेगा।
___ इस प्रकार हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कल्पावतंसिका सूत्र के प्रथम . अध्ययन का यह भाव फरमाया है। जैसा मैंने भगवान् से सुना है वैसा ही तुम्हें कहा है।
विवेचन - प्रस्तुत अध्ययन में पद्मकुमार का वर्णन किया गया है। प्रभु के मुखारविंद से जिनवाणी का श्रवण कर पद्मकुमार ने सांसारिक सुखों का त्याग किया व भरयौवन में प्रव्रज्या अंगीकार की। दीक्षा लेकर सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए अंत में विपुलगिरि पर पादपोपगमन संथारा किया और काल करके सौधर्म कल्प (देवलोक) में देव रूप से उत्पन्न हुए। जहां उनकी दो सागरोपम की स्थिति थी। पद्मदेव, देवलोक से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त होंगे।
॥ प्रथम अध्ययन समाप्त।
बीयं अज्झयणं
द्वितीय अध्ययन जइ णं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अटे पण्णते?
एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा णाम णयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए णयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा कूणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली णामं देवी होत्था०। तीसे णं सुकालीए पुत्ते सुकाले णाम कुमारे०। तस्स णं सुकालस्स कुमारस्स महापउमा णामं देवी होत्था, सुउमाल०॥३॥ ___ भावार्थ - जम्बू स्वामी ने पूछा - हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का पूर्वोक्त भाव फरमाया है तो हे भगवन्! प्रभु ने उसके द्वितीय अध्ययन का क्या भाव निरूपित किया है? .
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