________________
• वर्ग १ अध्ययन १ कोणिक का तिबारा दूत भेजना ........................................................... ___तएणं से दूर जाव कूणियस्स रण्णो वद्धावेत्ता एवं वयासी-चेडए राया आणवेइजह चेव णं देवाणुप्पिया! कूणिए राया सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए जाव वेहल्लं कुमारं पेसेमि, तं ण देइ णं सामी! चेडए राया सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं, वेहल्लं कुमारं णो पेसेइ॥५६॥
भावार्थ - तत्पश्चात् उस दूत ने यावत् कोणिक राजा को जय विजय से बधा कर इस प्रकार निवेदन किया - 'चेटक राजा ने फरमाया है कि - हे देवानुप्रिय! जैसे कोणिक राजा श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज है उसी प्रकार वेहल्लकुमार भी है यावत् राज्यादि का आधा भाग देने पर ही कुमार वेहल्ल को भेजूंगा। अतः हे स्वामिन्! चेटक राजा ने सेचनक गंध हस्ती एवं अठारह लड़ी वाला हार नहीं दिया है और न ही वेहल्लकुमार को भेजा है।'
. कोणिक का तिबारा दूत भेजना तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमदं सोचा णिसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तच्चं दूयं सहावेइ सहावेत्ता एवं वयासी-च्छह णं तुम देवाणुप्पिया! वेसालीए णयरीए. चेडगस्स रग्णो वामेणं पाएणं पाय(वी)पीढं अक्कमाहि अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणावेहि. पणावेत्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं पिडाले साहट्ट चेडगं रायं एवं क्याहि-हं भो चेडगराया! अपत्थियपत्थिया! दुरंत० जाव० परिवजिया, एस णं कूणिए राया आणवेइ पञ्चप्पिणाहि णं कूणियस्स रण्णो सेयणगं० अट्ठारसवंकं च हारं वेहल्लं च कुमारं पेसेहि अहवा जुद्धसज्जो चिट्ठाहि, एस णं कूणिए राया सबले सवाहणे सखंधावारे णं जुद्धसज्जे इह हव्वमागच्छइ॥५७॥
- कठिन शब्दार्थ - वामेणं पाएणं - बायें पैर से, पायपीढं - पादपीठ को, अवक्कमाहि - ठोकर मारना, कुंतग्गेणं - भाले की नोंक से, तिवलियं - त्रिवली, भिउडि - भृकुटि, जुद्धसज्जो - युद्ध सज्जित। ___ भावार्थ - तब कोणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक राजा के उत्तर को सुन क्रोधाभिभूत हो यावत् दांतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया और बुला कर कहा - हे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org