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बीयं अज्झयणं
दूसरा अध्ययन जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं णिरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स णिरयावलियाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? . ___ एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा णामं णयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए णयरीए सेणियस्स रण्णो भजा कूणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली णामं देवी होत्था, सुकुमाल। तए णं से सुकाले कुमारे अण्णया कयाइ तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कालो कुमारो णिरवसेसं तं चेव भाणियव्वं जाव महाविदेहे वासे............अंतं काहिइ। णिक्खेवो॥७॥
बीयं अज्झयणं समत्तं॥१॥२॥ भावार्थ - जम्बूस्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा-हे भगवन्! श्रमण भमवान् महावीर स्वामी ने निरयावलिका सूत्र के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ (भाव) प्रतिपादित किया है तो हे भगवन्! निरयावलिका सूत्र के द्वितीय अध्ययन में मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या भाव फरमाये हैं?
सुधर्म स्वामी ने कहा-हे जम्बू! उस काल उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। पूर्णभद्र नाम का चैत्य था। कोणिक नामक राजा वहाँ राज्य करता था जिसके पद्मावती नाम की महारानी थी।
उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या (पत्नी) कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी। जो अत्यंत सुकुमार थी।
उस सुकाली देवी का सुकाल नामक कुमार था जो सुकोमल यावत् सुरूप था।
तदनन्तर वह सुकाल कुमार किसी समय तीन हजार हाथियों आदि के साथ जिस प्रकार कालकुमार के विषय में कहा है उसी प्रकार सारा वर्णन कह देना चाहिए। वह भी रथमूसल संग्राम में मारा गया। मर कर चौथी नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से निकल कर महाविदेह में उत्पन्न होगा और सकल कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा। सभी कर्मों का अन्त करेगा।
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