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निरयावलिका सूत्र. ++++........... देवानुप्रिय! तुम वैशाली नगरी में जाओ और बायें पैर से चेटक राजा के पादपीठ को ठोकर मार कर भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र देकर क्रोधित यावत् दांतों को मिसमिसाते हुए भृकुटि तान कर ललाट में त्रिवली- तीन सल डाल कर चेटक राजा से इस प्रकार कहना-'अरे अप्रार्थित पार्थिकअकाल मृत्यु को चाहने वाले, बुरे परिणाम वाले निर्लज्ज राजा चेटक! तुझे कोणिक राजा आज्ञा देता है कि सेचनकगंधहस्ती और अठारह लड़ी वाला हार मुझे लौटा दे और वेहल्लकुमार को मेरे पास भेज दे अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जा। राजा कोणिक बल, वाहन और सेना के साथ युद्ध सज्जित हो शीघ्र आ रहा है।'
युद्ध की चेतावनी तए णं से दूए करयल० तहेव जाव जेणेव चेडए० तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल० जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-एस णं सामी! ममं विणयपडिवत्ती, इयाणिं कूणियस्स रण्णो आणत्ति चेडगस्स रण्णो वामेणं पाएणं पायपीढं अक्कमइ अक्कमित्ता आसुरुत्ते कुंतग्गेण लेहं पणावेइ तं चेव सबलखंधावारे णं इह हव्वमागच्छइ॥५८॥
भावार्थ - तब उस दूत ने हाथ जोड़ कर राजा कूणिक की आज्ञा को शिरोधार्य किया यावत् चेटक राजा के पास आकर उन्हें जयविजय से बधा कर इस प्रकार कहा - 'हे स्वामिन्! यह तो मेरी विनय प्रतिपत्ति है किन्तु कोणिक राजा की आज्ञा यह है कि बायें पैर से चेटक राजा के पादपीठ को ठोकर मार कर क्रोधित हो भाले की नोंक से यह पत्र दों इत्यादि सेना आदि सहित वे शीघ्र ही यहाँ आ रहे हैं।
तए णं से चेडए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमटुं सोचा णिसम्म आसुरत्ते जाव साहट्ट एवं वयासी-ण अप्पिणामि णं कूणियस्स रण्णो सेयणगं अट्ठारसवंकं हारं वेहल्लं च कुमारं णो पेसेमि, एस णं जुद्धसज्जे चिट्ठामि। तं दूयं असक्कारियं असंमाणियं अवदारेणं णिच्छुहावेइ॥५६॥
कठिन शब्दार्थ - असक्कारियं - असत्कार कर, असम्माणियं - असन्मान कर, अवदारेणं - अपमान कर, णिच्छुहावेइ - बाहर निकाल दिया। . ____ भावार्थ - वह चेटक राजा उस दूत के मुंह से इस प्रकार सुनकर क्रोधाभिभूत हो यावत् भृकुटि चढ़ा कर इस प्रकार बोला- 'मैं कोणिक राजा को सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ी वाला हार नहीं
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