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वर्ग १ अध्ययन १ भयंकर युद्ध ........................................................ सरेहिं समुल्लालियाहिं डावाहिं ओसारियाहिं ऊरुघण्टाहिं छिप्पतूरेणं वजमाणेणं महया उक्किट्ठसीहणाय-बोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सब्बिड्डीए जाव रवेणं हयगया हयगएहिं गयगया गयगएहिं रहगया रहगएहिं पायत्तिया पायत्तिएहि अण्णमण्णेहिं सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। तए णं ते दोण्हवि रायाणं अणीया णियगसामीसासंणाणुरत्ता महया जणक्खयं जणवहं जणप्पमदं जणसंवट्टकप्पं णचंतकबंधवारभीमं रुहिरकद्दमं करेमाणा अण्णमण्णेणं सद्धिं जुझंति॥७॥ . ____ कठिन शब्दार्थ - गरुलवूहं - गरुड व्यूह, सगडवूहं - शकट व्यूह, रहमुसलं संगाम - रथमूसल संग्राम, गहियाउहपहरणां - आयुधों एवं प्रहरणों को लेकर, मंगइएहिं फलएहिं - हाथों में थामी हुई ढालों से, णिक्किट्ठाहिं असीहिं - निकाली हुई (खींची हुई) तलवारों से, अंसागएहिं तोणेहिं - कंधों पर लटके तूणीरों से, सजीवेहिं धणूहिं - प्रत्यंचा युक्त (चढ़े हुए) धनुषों से, समुक्खित्तेहिं सरेहिं - छोड़े हुए बाणों से, समुल्लालियाहिं डावाहिं - फटकारते हुए डाबी (बांयी) भुजाओं से, ओसारियाहिं उरुघण्टाहिं - बजती हुई बंधी घंटिकाओं से।
भावार्थ - तत्पश्चात् दोनों राजाओं ने रणभूमि को सज्जित किया और अपनी-अपनी विजय के लिए प्रार्थना की। तदनन्तर कोणिक राजा ने तेतीस हजार हाथियों यावत् लेतीस करोड़ पैदल सैनिकों से गरुड़ व्यूह की रचना की और रचना करके रथमूसल संग्राम करने के लिए आया। चेटक राजा ने भी सत्तावन हजार हाथियों यावत् सत्तावन करोड़ पैदल सैनिकों से शकट व्यूह की रचना की और रचना करके रथमूसल संग्राम करने के लिए आया।
तब दोनों राजाओं की सेनाएं युद्ध के लिए तत्पर हो यावत् अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित हो, हाथों में थामी हुई ढालों से, म्यानों से खींची हुई तलवारों से, कंधों पर लटके तूणीरों से, चढ़े हुए धनुषों से, छोड़े हुए बाणों से, फटकारते हुए बायीं भुजाओं से, जोर-जोर से बजती घंटिकाओं से, शीघ्रता से बजाये जाते हुए भेरी आदि वाद्यों से भयंकर सिंहनाद के सदृश कोलाहल से भीषण गर्जना करते हुए सर्व ऋद्धि यावत् वाद्य घोषों से घुड़सवार घुड़सवारों से, हाथी वाले हाथियों से, रथ वाले रथिकों से पदाति (पैदल) पैदल सैनिकों से इस प्रकार परस्पर युद्ध करने के लिए संनद्ध हो गए। दोनों राजाओं की सेनाएं अपने अपने स्वामी के शासनानुराग से अनुरक्त थीं अतः महान् जनक्षय, जनवध, जनमर्दन, जनसंहार और नाचते हुए रुंड मुण्डों से भयंकर रक्त का कीचड़ करती हुई परस्पर युद्ध में लड़ने लगी।
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