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निरयावलिका सूत्र ........................................................... हत्थिखंधवरगया पत्तेयं पत्तेयं तिहिं दंतिसहस्सेहिं एवं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहि तिहिं मणुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडा जाव रवेणं सएहितो सएहितो णयरेहिंतो पडिणिक्खमह पडिणिक्खमित्ता ममं अंतियं पाउन्भवह॥६१॥
भावार्थ - तदनन्तर कोणिक राजा काल आदि दस कुमारों को इस प्रकार कहता है - 'हे देवानुप्रियो! तुम लोग अपने-अपने राज्य में जाओ। वहाँ स्नान यावत् मांगलिक कृत्य कर हाथी पर चढ़ कर प्रत्येक अलग-अलग तीन हजार हाथियों, तीन हजार रथों, तीन हजार घोड़ों और तीन करोड़ मनुष्यों (सैनिकों) के साथ सभी प्रकार की ऋद्धि वैभव यावत् सजधज कर दुंदुभि घोष के साथ अपने-अपने नगरों से निकलो और मेरे पास आओ।
तए णं ते कालाईया दस कुमारा कूणियस्स रण्णो एयमढे सोच्चा सएसु सएसु रज्जेस पत्तेयं पत्तेयं व्हाया जाव तिहिं मणुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं सएहिंतो सएहिंतो णयरेहिंतो पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता जेणेव अंगा जणवए जेणेव चंपा णयरी जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागया करयल० जाव वद्धावेंति॥२॥
भावार्थ - तब वे काल आदि दस कुमार कोणिक राजा के इस कथन को सुन कर अपने-अपने राज्यों में गये। प्रत्येक ने स्नान किया यावत् तीन करोड़ मनुष्यों-सैनिकों के साथ समस्त ऋद्धि यावत् वाद्य घोष के साथ अपने-अपने नगरों से निकले और निकल कर जहाँ अंग जनपद था, जहाँ चम्पानगरी थी जहाँ कूणिक राजा था वहाँ आए और दोनों हाथों को जोड़ कर यावत् राजा को बधाया।
कोणिक का निर्देश तए णं ते कूणिए राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगयरहजोहचाउरंगिणिं सेणं संणाहेह, ममं एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह जाव पञ्चप्पिणंति। तए णं से कूणिए राया जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ जाव पडिणिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाव णरवई दुरुढे॥६३॥
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