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वर्ग 9 अध्ययन १ चेटक की शरण में
हर हाथी की मांग
तए णं से कूणिए राया पउमावईए० एयमहं णो आढाइ णो परिजाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठ । तए णं सा पउमावई देवी अभिक्खणं अभिक्खणं कूणियं रायं एयमहं विष्णवेइ। तए णं से कूणिए राया पउमावईए देवीए अभिक्खणं अभिक्खणं एयमट्टं विण्णविजमाणे अण्णया कयाइ वेहल्लं कुमारं सद्दावेइ सद्दावित्ता सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं जायइ ॥ ४७ ॥
भावार्थ- कोणिक राजा ने पद्मावती के इस कथन का आदर नहीं किया, उसे सुना नहींअनसुना कर दिया और मौन रहा । तत्पश्चात् पद्मावती ने बार-बार कोणिक राजा से यही विनती की। पद्मावती द्वारा बार-बार इसी बात को दुहराने पर कोणिक राजा ने किसी समय वेहल्लकुमार को बुलाया और बुला कर उससे सेचनक गंधहस्ती और अठारहलड़ी वाला हार मांगा।
तणं से वेहल्ले कुमारे कूणियं रायं एवं वयासी एवं खलु सामी ! सेणिएणं रण्णा जीवंतेषं चैव सेयणए गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे दिण्णे, तं जइ णं सामी ! तुम्भे ममं रजस्स य जाव जणवयस्स य अद्धं दलयह तो णं अहं तुब्भं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं दलयामि । तए णं से कूणिए राया वेहल्लस्स कुमारस्स एयम णो आढाइ णो परिजाणाइ, अभिक्खणं अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं जाय ॥ ४८ ॥
भावार्थ - तब वेहल्लकुमार ने कोणिक राजा से इस प्रकार कहा - " हे स्वामिन्! श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही मुझे यह सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ी का हार दिया था । अतः हे स्वामिन्! यदि आप राज्य यावत् जनपद का आधा भाग मुझे दे दें तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ी का हार दे दूँगा । "
कोणिक राजा ने वेहल्लकुमार के इस कथन को स्वीकार नहीं किया, उस पर ध्यान नहीं दिया . और बारबार सेचनक गंधहस्ती एवं अठारह लड़ी हार की याचना की।
चेटक की शरण में
तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स कूणिएणं रण्णा अभिक्खणं अभिक्खणं सेयणगं
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