Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 59
________________ निरयावलका सूत्र गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं.... एवं खलु अक्खिविउकामे णं गिहिउकामे णं उद्दाले कामे णं ममं कूणिए राया सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं, तं जाव ममं कूणि राया ताव सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडस्स सभण्डमत्तोवगरणमायाए चंपाओ णयरीओ पडिणिक्खमित्ता वेसालीए णयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपजित्ताणं विहरितए, एवं संपेहेइ संपेहित्ता कूणियस्स रण्णो अंतराणि जाव पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहर। तसे वेहल्ले कुमारे अण्णया कयाइ कूणियस्स रण्णो अंतरं जाणइ जाणित्ता सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियाल संपरिवुडे सभण्डमत्तोवगरणमायाए चंपाओ णयरीओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव वेसाली णयरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वेसालीए णयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥ ४६ ॥ कठिन शब्दार्थ - अक्खिविउकामे - छीन लेने की इच्छा करता है, गिहिउकामे - ग्रहण करने की इच्छा करता है, उद्दालेउकामे - झपटना चाहता है। भावार्थ - तत्पश्चात् वेहल्लकुमार के मन में यह विचार आया कि कोणिक राजा मुझ से बारबार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ी हार की मांग कर रहा है अतः वह मुझ से उनको छीन लेने की इच्छा करता है, ग्रहण करने की इच्छा करता है, झपटना चाहता है अतः मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि जब तक कोणिक राजा मुझ से सेचनक गंधहस्ती और अठारह लडी वाला हार छीन न ले, ग्रहण न कर ले, मुझ से झपट न ले, उसके पहले ही गंधहस्ती एवं हार अंतःपुर परिवार के साथ सभी भण्डोपकरणों को ले कर चम्पानगरी से निकल कर, वैशाली नगरी के राजा नाना चेटक के पास जाकर रहूँ। ऐसा विचार करके वह कोणिक राजा के अंतर को यावत् उनकी अनुपस्थिति को देखता हुआ रहने लगा। ४२ तदनन्तर किसी दिन वेहल्लकुमार ने कोणिक राजा की अनुपस्थिति को जाना और सेचनक गंधहस्ती, अठारह लडी वाला हार तथा अंतःपुर परिवार सहित गृहोपयोगी साधनों को लेकर चंपानगरी से निकला, निकल कर जहाँ वैशाली नगरी थी वहाँ आया, आकर अपने नाना चेटक राजा का आश्रय लेकर वहाँ रहने लगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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