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निरयावलिका सूत्र
भण्डोपकरणों को लेकर यावत् आर्य चेटक के पास जाकर रह रहा है, इस कारण मेरे लिए उचित है कि मैं दूत भेज कर सेचनक गंध हस्ती और अठारह लड़ियों वाला हार मंगवा लूँ, ऐसा सोचकर वह दूत को बुलाता है बुलाकर इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय! तुम वैशाली नगरी में जाओ वहाँ आर्य चेटक राजा को दोनों हाथ जोड़ कर यावत् जयविजय शब्दों से बधा कर इस प्रकार निवेदन करना''स्वामिन्! कूणिक राजा विनति करते हैं कि वेहल्लकुमार राजा कोणिक को बिना बताए ही सेचनक गंध हस्ती और अठारह लड़ी हार को लेकर यहाँ आ गये हैं अतः आप कोणिक राजा पर अनुग्रह करके सेचनक गंध हस्ती और अठारह लड़ी हार कोणिक राजा को वापिस लौटा दें और वेहल्लकुमार को भी भेज दें।' ___तए णं से दूए कूणिएणं० करयल० जाव पडिसुणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जहा चित्तो जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी! कूणिए राया विण्णवेइ-एस णं वेहल्ले कुमारे तहेव भाणियव्वं जाव वेहल्लं कुमार च पेसेह॥५१॥ ____ भावार्थ - इसके बाद वह दूत राजा कोणिक के द्वारा कहे हुए वचनों को स्वीकार कर अपने घर पर आया और आकर चित्त सारथि के समान यावत् वैशाली पहुंचा और आर्य चेटक को हाथ जोड़ कर जय विजय के साथ बधा कर इस प्रकार निवेदन किया-'हे स्वामिन्! राजा कोणिक आपसे निवेदन करते हैं कि 'वेहल्लकुमार उन्हें बिना कुछ बताए सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ी हार लेकर आपके पास चला आया है अतः आप हार और हाथी के साथ वेहल्लकुमार को वापस भेज दें।'
चेटक राजा का उत्तर तए णं से चेडए राया तं दूयं एवं वयासी-जह चेव णं देवाणुप्पिया! कूणिए राया सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं णत्तुए तहेव णं वेहल्लेवि कुमारे सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए मम णतुए, सेणिएणं रण्णा जीवंतेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे पुवदिण्णे, तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रजस्स य रट्ठस्स य जणवयस्स य अद्धं दलयइ तो णं अहं सेयणगं० अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रण्णो पञ्चप्पिणामि वेहल्लं च कुमारं पेसेमि। तं दूयं सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसजेइ॥५२॥
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