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वर्ग १ अध्ययन १ पुत्र का कोणिक' नामकरण
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अंगुली पक गयी और उसमें से बारबार पीव और खून बहता रहता था फलस्वरूप वह बालक वेदना से अभिभूत हो रोता चिल्लाता था। उस बालक के रोने की आवाज सुन कर श्रेणिक राजा बालक के पास आता है, उसे हथेलियों में ग्रहण करता है और उसकी अंगुली को मुख में लेकर उस पीव और खून को मुख से चूस कर थूक देता है। ऐसा करने से उस बालक को शांति का अनुभव होता है और वह रोते हुए चुप-शांत हो जाता है। इस प्रकार जब जब भी वह बालक वेदना के कारण रोता चिल्लाता, तब तब राजा श्रेणिक उस बालक के पास आता, उसे गोदी में लेता और उसी प्रकार उसके पीप और खून को मुंह से चूस कर थूक देता यावत् वेदना शांत हो जाने से वह चुप हो जाता था।
पुत्र का 'कोणिक' नामकरण तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो तइए दिवसे चंदसूरदरिसणियं करेंति जाव संपत्ते बारसाहे दिवसे अयमेयारूवं गुणणिप्फणं णामधेनं करेंति-जम्हा णं अम्हं इमस्स दारगस्स एगंते उक्कुरुडियाए उझिजमाणस्स अंगुलिया कुक्कुडपिच्छएणं दूमिया तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स णामधेनं कूणिए-कूणिए। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेनं करेंति 'कूणिय' ति। तए णं तस्स कुणियस्स आणुपुव्वेणं ठिइवडियं च जहा मेहस्स जाव उपिं पासायवरगए विहरइ, अट्ठओ दाओ॥३३॥ ___ कठिन शब्दार्थ - चंदसूरदरिसणियं - चन्द्रसूर्य दर्शन, गुणणिप्फणं - गुण निष्पन्न, अट्ठओ - आठ-आठ, दाओ - प्रीति दान।
भावार्थ - तत्पश्चात् माता-पिता ने तीसरे दिन बालक को चन्द्र सूर्य का दर्शन कराया यावत् बारहवें दिन इस प्रकार गुण निष्पन्न नामकरण किया-इस बालक को एकान्त उकरडे पर फैंके जाने से इसकी अंगुली का अग्रभाग कुक्कुट (मुर्गे) की चोंच से क्षतिग्रस्त हो गया (छिल गया) था। इस कारण इस बालक का नाम 'कोणिक' (कूणिक) हो। इस प्रकार कह कर उस बालक के माता-पिता ने उसका नाम 'कोणिक' (कूणिक) रखा। तदनन्तर उस बालक का जन्मोत्सव आदि मनाया गया यावत् बड़ा होकर वह मेघकुमार के समान सुख पूर्वक समय व्यतीत करने लगा। आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ यावत् आठ-आठ वस्तुएं प्रीतिदान (दहेज) में मिली।
विचेचन - प्रस्तुत सूत्र में वर्णित राजकुमार कोणिक का जन्म महोत्सव, पांच धात्रियों द्वारा
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