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निरयावलिका सूत्र
................................................... करेत्ता चेल्लणं देविं एवं वयासी-किं णं अम्मो! तुम्हं ण तुट्ठी वा ण ऊसए वा ण हरिसे वा ण आणंदे वा, जं णं अहं सयमेव रजसिरिं जाव विहरामि? ॥३७॥ ___ भावार्थ - तत्पश्चात् कोणिक राजा अन्यदा-किसी समय स्नान करके यावत् सभी अलंकारों से विभूषित होकर चेलना देवी के चरणों में वंदना करने के लिए पहुंचता है। तब वह चेलना देवी को मन के संकल्प से आहत यावत् आर्तध्यान करती हुई देखता है। देखकर चेलना देवी के चरणों में वंदना करता है। वंदना करके चेलना देवी को इस प्रकार कहता है - हे माता! ऐसा क्या कारण है कि तुम्हारे चित्त में संतोष, उत्साह, हर्ष और आनंद नहीं है जब कि मैं स्वयं राज्य श्री का उपभोग करते हुए यावत् समय व्यतीत कर रहा हूँ। अर्थात् मेरा राजा होना क्या आपको अच्छा नहीं लग रहा है?
कोणिक-चेलना संवाद तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं रायं एवं वयासी-कहं णं पुत्ता! ममं तुट्ठी वा ऊसए वा हरिसे वा आणंदे वा भविस्सइ जंणं तुमं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अञ्चतंणेहाणुरागरत्तं णियलबंधणं करित्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावेसि?॥३८॥
भावार्थ - तब चेलना देवी ने कोणिक राजा से इस प्रकार कहा - हे पुत्र! मेरे चिंत्त में संतोष, उत्साह, हर्ष अथवा आनंद कैसे हो सकता है? जबकि तुमने अपने देव रूप, गुरु तुल्य अत्यंत स्नेहानुराग युक्त पिता श्रेणिक राजा को बंधन में डाल कर अपना महान् राज्याभिषेक से अभिषेक कराया है। __तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं एवं वयासी-घाएउकामे णं अम्मो! मम सेणिए राया, एवं मारेउ० बंधिउ० णिच्छुभिउकामे णं अम्मो! ममं सेणिए राया, तं कहं णं अम्मो! ममं सेणिए राया अञ्चतंणेहाणुरागरत्ते? ॥३६॥ ___ भावार्थ - यह सुनकर राजा कोणिक चेलना देवी से इस प्रकार कहने लगा-हे माता! यह श्रेणिक राजा तो मेरी घात चाहने वाला है एवं मेरा मरण और बंधन चाहने वाला है तथा मेरे को दुःख देने वाला है वह मुझ पर अत्यन्त स्नेह और अनुराग से अनुरक्त कैसे हो सकता है? __तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं कुमारं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता! तुमंसि ममं गब्भे आभूए समाणे तिहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं ममं अयमेयारूवे दोहले
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