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वर्ग १ अध्ययन १ कोणिक का माता के पादवंदनार्थ जाना
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च एक्कारसभाए विरिचित्ता सयमेव रज्जसिरिं करेमाणाणं पालेमाणाणं जाव विहरित्तए॥३५॥
भावार्थ - तदनन्तर कोणिककुमार श्रेणिक राजा के अंतर यावत् मर्म को नहीं जान सकने के कारण किसी समय काल आदि दस राजकुमारों को अपने घर बुलाता है, बुला कर इस प्रकार कहता है - हे देवानुप्रियो! श्रेणिक राजा के व्याघात के कारण हम स्वयं राज्यश्री का उपभोग नहीं कर सकते हैं अतः हे देवानुप्रियो! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है कि हम श्रेणिक राजा को बंधनों (बेड़ी-कैद खाने) में डाल कर राज्य, राष्ट्र, सैन्य (बल) वाहन, कोष, कोठार (धान्य भण्डार) और जनपद (देश) को ग्यारह भागों में बांट कर हम स्वयं राज्यश्री का उपभोग करें और राज्य का पालन करें।
. कोणिक राजा बना तए णं ते कालाईया दस कुमारा कूणियस्स कुमारस्स एयमढे विणएणं 'पडिसुणंति। तए णं से कूणिए कुमारे अण्णया कयाइ सेणियस्स रण्णो अंतरं जाणइ जाणेत्ता सेणियं रायं णियलबंधणं करेइ करेत्ता अप्पाणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावेइ। तए णं से कूणिए कुमारे राया जाए महया०॥३६॥ ... भावार्थ - उन काल कुमार आदि दसों भाइयों ने कोणिक के इस कथन को सुन कर विनय पूर्वक स्वीकार किया। तत्पश्चात् कोणिककुमार किसी समय श्रेणिक राजा के अन्तर (अंदरुनी रहस्य) को जानता है जान कर श्रेणिक राजा को बेड़ी से बांधता है बांधकर बड़े समारोह के साथ . अपना राज्याभिषेक करवाता है जिससे कोणिक स्वयं राजा बन गया।
. विवेचन - "लोहो सब्ब विणासणो" लोभ सभी सद्गुणों का नाशक है, इसलिए लोभ पाप का बाप कहा जाता है। राज्य शासन का प्रलोभी कोणिक अपने उपकारी पिता श्रेणिक महाराजा को कैद में डाल कर स्वयं राजा बन जाता है। काल आदि कुमार कोणिक की बातों में आ गये और वे भी कोणिक के षड्यंत्र में सम्मिलित हो गए।
कोणिक का माता के पादवंदनार्थ जाना तए णं से कूणिए राया अण्णया कयाइ हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए चेल्लणाए वेवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ। तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं ओहय० जाव मियायमाणिं पासइ पासित्ता चेल्लणाए देवीए पायग्गहणं करेइ
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